Friday, 12 July 2019

विसंगतियां

विसंगतियां

आकर हाथों की हद में सितारे छूट जाते हैं
हमेशा ख़्वाब रातों के सुबह में टूट जाते हैं।


लुभाते हैं मंजर  हसीन वादियों के मगर
छूटते पटाखों से भरम बस टूट जाते हैं ।

चाहिए आसमां बस एक मुठ्ठी भर फ़कत
पास आते से नसीब बस रूठ जाते हैं ।

सदा तो देते रहे आमो ख़ास को  मगर
सदाक़त के नाम पर कोरा रोना रुलाते हैं।

तपती दुपहरी में पसीना सींच कर अपना
रातों को खाली पेट बस सपने सजाते हैं।
           
                  कुसुम कोठारी।

16 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14 -07-2019) को "ज़ालिमों से पुकार मत करना" (चर्चा अंक- 3396) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

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    1. बहुत सा आभार आपका मेरी रचना को मान देने हेतु तहे-दिल से।

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  2. तपती दुपहरी में पसीना सींच कर अपना
    रातों को खाली पेट बस सपने सजाते हैं। बेहतरीन प्रस्तुति सखी 🌹🌹

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    1. सार्थक प्रतिक्रिया सखी सस्नेह आभार आपका ।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 14 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. वाह मैं अभिभूत हुई।
      सादर आभार आपका।

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  4. तरह तरह के भ्रम से बाहर नकिालती रचना, क्या खूब ल‍िखा है कुसुम जी

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    1. जी सुंदर सा विश्लेषण करती मनभावन प्रतिक्रिया।
      सस्नेह आभार आपका।

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  5. बहुत बढ़िया

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  6. सराहनीय बहुत सुंदर रचना दी👌

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    1. सस्नेह आभार श्वेता आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।

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  7. बहित ही सराहनीय रचना कुसुम जी
    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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    1. जी सादर आभार आपका प्रोत्साहन मिला ।
      मैं आती रहती हूं आपकी पोस्ट पर जब भी देखती हूं।
      सादर।

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  8. लुभाते हैं मंज़र ...
    वाह ... अच्छे शेरोन से सजी रचना ... लाजवाब ...

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    1. हृदय तल से शुक्रिया नासवा जी आपकी असाधारण प्रतिक्रिया और सहयोग का।
      सादर।

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