लुभाते हैं मंजर हसीन वादियों के मगर
छूटते पटाखों से भरम बस टूट जाते हैं ।
चाहिए आसमां बस एक मुठ्ठी भर फ़कत
पास आते से नसीब बस रूठ जाते हैं ।
सदा तो देते रहे आमो ख़ास को मगर
सदाक़त के नाम पर कोरा रोना रुलाते हैं।
तपती दुपहरी में पसीना सींच कर अपना
रातों को खाली पेट बस सपने सजाते हैं।
कुसुम कोठारी।
छूटते पटाखों से भरम बस टूट जाते हैं ।
चाहिए आसमां बस एक मुठ्ठी भर फ़कत
पास आते से नसीब बस रूठ जाते हैं ।
सदा तो देते रहे आमो ख़ास को मगर
सदाक़त के नाम पर कोरा रोना रुलाते हैं।
तपती दुपहरी में पसीना सींच कर अपना
रातों को खाली पेट बस सपने सजाते हैं।
कुसुम कोठारी।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14 -07-2019) को "ज़ालिमों से पुकार मत करना" (चर्चा अंक- 3396) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
बहुत सा आभार आपका मेरी रचना को मान देने हेतु तहे-दिल से।
Deleteतपती दुपहरी में पसीना सींच कर अपना
ReplyDeleteरातों को खाली पेट बस सपने सजाते हैं। बेहतरीन प्रस्तुति सखी 🌹🌹
सार्थक प्रतिक्रिया सखी सस्नेह आभार आपका ।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 14 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह मैं अभिभूत हुई।
Deleteसादर आभार आपका।
तरह तरह के भ्रम से बाहर नकिालती रचना, क्या खूब लिखा है कुसुम जी
ReplyDeleteजी सुंदर सा विश्लेषण करती मनभावन प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका ।
Deleteसराहनीय बहुत सुंदर रचना दी👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार श्वेता आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।
Deleteबहित ही सराहनीय रचना कुसुम जी
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
जी सादर आभार आपका प्रोत्साहन मिला ।
Deleteमैं आती रहती हूं आपकी पोस्ट पर जब भी देखती हूं।
सादर।
लुभाते हैं मंज़र ...
ReplyDeleteवाह ... अच्छे शेरोन से सजी रचना ... लाजवाब ...
हृदय तल से शुक्रिया नासवा जी आपकी असाधारण प्रतिक्रिया और सहयोग का।
Deleteसादर।