धरा का स्वयंवर
धरा ने आज देखो
स्वयंवर है रच्यो ।
चंद्रमल्लिका हार
सुशोभित सज्यो।
नव पल्लव नर्म उर
चूनर धानी रंग्यो।
सरस गुलाबी गात
आंख अंजन डार् यो।
मेघ हुलकत दौड़े
ज्यों नौबत बाज्यो ।
हेत सागर लहरायो
हिय उमंग भर् यो।
बूंदों संग संदेशो आयो
वसुधा धीर धर् यो।
मही के अनंग जग्यो
हर्ष अपार भय्यो ।
हवा भी हो हर्षित
पातो संग रास रच्यो ।
क्षितिज के उस पार
मिलन को नेह धर् यो ।
कुसुम कोठारी ।
धरा ने आज देखो
स्वयंवर है रच्यो ।
चंद्रमल्लिका हार
सुशोभित सज्यो।
नव पल्लव नर्म उर
चूनर धानी रंग्यो।
सरस गुलाबी गात
आंख अंजन डार् यो।
मेघ हुलकत दौड़े
ज्यों नौबत बाज्यो ।
हेत सागर लहरायो
हिय उमंग भर् यो।
बूंदों संग संदेशो आयो
वसुधा धीर धर् यो।
मही के अनंग जग्यो
हर्ष अपार भय्यो ।
हवा भी हो हर्षित
पातो संग रास रच्यो ।
क्षितिज के उस पार
मिलन को नेह धर् यो ।
कुसुम कोठारी ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आपका सांध्य दैनिक.,...में मेरी रचना शामिल करने हेतु।
Deleteसादर ।
बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी।
Deleteअति सुन्दर रचना प्रिय कुसुम
ReplyDeleteढेर सा आभार दी ।
Deleteअत्यंत सुन्दर ..मनमोहक और अद्भुत सृजन !!
ReplyDeleteबहुत सा आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया सदा हर्षित करती है।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।
ReplyDeleteसरनेम भरा आभार ज्योति बहन ।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन दी जी
ReplyDeleteसादर