Wednesday, 10 July 2019

क्या जीत क्या हारा

क्या जीता क्या हारा

फतह तो किले किये जाते हैं
राहों को कौन जीत पाया भला
करना हो कुछ भी हासिल
कुछ खोना कुछ पाना हो
चाहे हो सिकंदर कहीं का
इन्ही राहों से जाना हो
कोई हार के,
दिल जीत गया विजेताओं के
कोई जीत के,
हार गया सम्मान आंखों से
क्या हारा क्या जीता का
हिसाब बहुत ही टेढ़ा है
जीत हार का मान दंड
सदा अलग सा होता है
सभी जीत का जश्न मनाते
हार गये तो रोता है
नादान ए इंसान हार जीत में
कितने रिश्ते खोता है
अपना दिल हार के देखो
संसार तुम पर हारेगा
महावीर ने जग हार कर
सिद्धत्व को जीत लिया
जग में कितने जीतने वालों ने
अपना मान ही हार दिया
तो क्या जीता क्या हारा
आंकलन हो बस खरा खरा।

कुसुम कोठारी।

22 comments:

  1. महावीर ने जग हार कर
    सिद्धत्व को जीत लिया
    जग में कितने जीतने वालों ने
    अपना मान ही हार दिया
    तो क्या जीता क्या हारा
    आंकलन हो बस खरा खरा। सुंदर और सार्थक रचना सखी 👌

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है ।

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  2. बेहतरीन सृजन दी जी 👌
    सादर

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    1. ढेर सा स्नेह बहना।
      सस्नेह आभार बहुत सा ।

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  3. जी सादर आभार आपका अनुग्रहित हूं सर मैं।
    सादर

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  4. वाह!!कुसुम जी ,बहुत सुंदर सृजन ।

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    1. ढेर सा स्नेह और खूब सा आभार शुभा जी ।

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  5. फतह तो किले किये जाते हैं
    राहों को कौन जीत पाया भला...
    सत्य और अनुभव से कही गयी बात है। मन की राह की यह अभिव्यक्ति अच्छी लगी।

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    1. बहुत बहुत आभार पुरुषोत्तम जी आपकी समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
      सादर।

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  6. विश्वकप में मिली हार पर सांत्वना देती सुंदर रचना..

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    1. ढेर सा स्नेह आभार अनिता जी बस ऐसे ही लिखी थी कुछ संयोग समझिये कि ऐसा मेल मिला।
      ब्लॉग पर आपको देख आतंरिक खुशी हुई स्नेह बधाये रखें।
      सस्नेह।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १२ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार पांच लिंकों के लिए चयनित होना सदा मनभावन होता है ।

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  8. बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना कुसुम जी !

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    1. जी बहुत सा स्नेह आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।

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  9. जीत हार का मान दंड
    सदा अलग सा होता है
    सभी जीत का जश्न मनाते
    हार गये तो रोता है

    अति सुंदर

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    1. बहुत बहुत आभार आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का।
      सादर।

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    1. सादर आभार दी आपकी सराहना सदा मनभावन ।
      सादर।

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  11. जीत हार का मान दंड
    सदा अलग सा होता है
    सभी जीत का जश्न मनाते
    हार गये तो रोता है
    नादान ए इंसान हार जीत में
    कितने रिश्ते खोता है
    बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन सराहनीय प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
      सस्नेह ।

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  12. जीत हार का मान दंड
    सदा अलग सा होता है
    सभी जीत का जश्न मनाते
    हार गये तो रोता है
    वाह!!!!
    क्या बात... बहुत लाजवाब...।

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