वक्त बदला
वक्त बदला तो संसार ही बदला नज़र आता है
उतरा मुलम्मा फिर सब बदरंग नज़र आता है।
दुरूस्त ना की कस्ती और डाली लहरों में
फिर अंजाम ,क्या हो साफ नज़र आता है ।
मिटते हैं आशियाने मिट्टी के ,सागर किनारे
फिर क्यों बिखरा औ परेशान नज़र आता है।
ख्वाब कब बसाता है गुलिस्तां किसीका
ऐसा उजड़ा कि बस हैरान नज़र आता है।
कुसुम कोठारी ।
वक्त बदला तो संसार ही बदला नज़र आता है
उतरा मुलम्मा फिर सब बदरंग नज़र आता है।
दुरूस्त ना की कस्ती और डाली लहरों में
फिर अंजाम ,क्या हो साफ नज़र आता है ।
मिटते हैं आशियाने मिट्टी के ,सागर किनारे
फिर क्यों बिखरा औ परेशान नज़र आता है।
ख्वाब कब बसाता है गुलिस्तां किसीका
ऐसा उजड़ा कि बस हैरान नज़र आता है।
कुसुम कोठारी ।
वाह बिल्कुल सही
ReplyDeleteदुरुस्त ना की कश्ती और डाली लहरों में
फिर अंजाम क्या हो साफ
नज़र आता है .....
जी बहुत सा आभार आपका ।
Deleteब्लॉग पर स्वागत है।
मिटते हैं आशियाने मिट्टी के ,सागर किनारे
ReplyDeleteफिर क्यों बिखरा औ परेशान नज़र आता है।
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति सखी
आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली सखी बहुत सा आभार।
Deleteसस्नेह ।
बहुत खूब ...
ReplyDeleteमुलम्मा उतर जाए तो सब साफ़ हो जाता है ... असली बदरंग चेहरा भी ...
हर शेर लाजवाब ...
आपकी विधा में आपसे दाद मिली लेखन सार्थक हुवा ढेर सारा आभार आपका नासवा जी।
Deleteसादर।
वाह!बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसस्नेह आभार पम्मी जी ।
Deleteआप फेसबुक पर नही दिख रहे हो ।
बहुत सुन्दर दी
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह प्रिय बहना ।
Deleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार आपका ।
Deleteवाह वाह
ReplyDeleteवाह वाह
बेहद उम्दा वाह
सस्नेह आभार आंचल बहना।
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