Tuesday, 9 April 2019

वक्त बदला

वक्त बदला

वक्त बदला तो संसार ही बदला नज़र आता है
उतरा मुलम्मा फिर सब बदरंग नज़र आता है।

दुरूस्त ना की कस्ती और डाली लहरों में
फिर अंजाम ,क्या हो साफ नज़र आता है ।

मिटते हैं आशियाने मिट्टी के ,सागर किनारे
फिर क्यों बिखरा औ परेशान नज़र आता है।

ख्वाब कब बसाता है गुलिस्तां किसीका
ऐसा  उजड़ा कि बस हैरान नज़र आता है।

                  कुसुम कोठारी ।

14 comments:

  1. वाह बिल्कुल सही
    दुरुस्त ना की कश्ती और डाली लहरों में
    फिर अंजाम क्या हो साफ
    नज़र आता है .....

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत सा आभार आपका ।
      ब्लॉग पर स्वागत है।

      Delete
  2. मिटते हैं आशियाने मिट्टी के ,सागर किनारे
    फिर क्यों बिखरा औ परेशान नज़र आता है।
    बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति सखी

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली सखी बहुत सा आभार।
      सस्नेह ।

      Delete
  3. बहुत खूब ...
    मुलम्मा उतर जाए तो सब साफ़ हो जाता है ... असली बदरंग चेहरा भी ...
    हर शेर लाजवाब ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी विधा में आपसे दाद मिली लेखन सार्थक हुवा ढेर सारा आभार आपका नासवा जी।
      सादर।

      Delete
  4. वाह!बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार पम्मी जी ।
      आप फेसबुक पर नही दिख रहे हो ।

      Delete
  5. Replies
    1. बहुत सा स्नेह प्रिय बहना ।

      Delete
  6. सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  7. वाह वाह
    वाह वाह
    बेहद उम्दा वाह

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार आंचल बहना।

      Delete