बन रे मन तू चंदंन वन
बन रे मन तू चंदन वन
सौरभ का बन अंश अंश।
कण कण में सुगंध जिसके
हवा हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर पोर शीतल बनके।
बन रे मन तू चंदन वन।
भाव रहे निर्लिप्त सदा
मन में वास नीलकंठ
नागपाश में हो जकड़े
सुवास रहे सदा आकंठ।
बन रे मन तू चंदन वन ।
मौसम ले जाय पात यदा
रूप भी ना चितचोर सदा
पर तन की सुरभित आर्द्रता
रहे पीयूष बन साथ सदा।
बन रे मन तू चंदन वन ।
घस घस खुशबू बन लहकूं
ताप संताप हरुं हर जन का
जलकर भी ऐसा महकूं, कहे
लो काठ जला है चंदन का।
बन रे मन तू चंदन वन ।।
कुसुम कोठारी।
घस घस खुशबू बन लहकूं
ReplyDeleteताप संताप हरुं हर जन का
जलकर भी ऐसा महकूं, कहे
लो काठ जला है चंदन का।
सुंदर अभिव्यक्ति सखी
वाह सखी गहन भाव पंक्तियाँ पकड़ी आपने। सस्नेह आभार।
Deleteअतीव सुन्दर...., ईश आराधना में समर्पित अप्रतिम भाव ।
ReplyDeleteमनमोहक सृजन कुसुम जी ।
सस्नेह आभार भाई आपकी सराहना से रचना मुखरित हुई।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार मीना जी रचना को और गति मिली आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर दिल को छूती रचना,कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योति बहन ।
Deleteवाह, क्या बात है। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteजी हृदय तल से आभार आपका।
Deleteखूबसूरत रचना 👌👌👌
ReplyDeleteढेर सा आभार सखी।
Deleteसस्नेह ।
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" l में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/116.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Delete
ReplyDeleteबन रे मन तू चंदन वन
सौरभ का बन अंश अंश।
कण कण में सुगंध जिसके
हवा हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर पोर शीतल बनके।
बन रे मन तू चंदन वन।
बेहतरीन हृजन। भाव भावभीनी रचना।
बहुत बहुत आभार पुरुषोत्तम जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteकण कण में सुगंध जिसके
ReplyDeleteहवा हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर पोर शीतल बनके।!!!
बहुत खूब प्रिय कुसुम बहन ! मन चन्दन बन सरीखा महके और हरि के ललाट पर सुशोभित हो तो मन की इससे बढ़कर सार्थकता और क्या ? चन्दन सी महकती भावपूर्ण सुंदर रचना | हार्दिक शुभकामनायें |
बहुत सा आभार रेनू बहन आपकी सक्रिय उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी रे सिर्फ रघना ही नही रचनाकार को भी लेखन में गति मिलती है।
ReplyDeleteआपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया का हृदय से आभार।
सस्नेह ।