निशिगंधा की भीनी
मदहोश करती सौरभ
चांदनी का रेशमी
उजला वसन
आल्हादित करता
मायावी सा मौसम
फिर झील का अरविंद
उदास गमगीन क्यों
सूरज की चाहत
प्राणो का आस्वादन है
रात कितनी भी
मनभावन हो
कमल को सदा चाहत
भास्कर की लालिमा है
जैसे चांद को चकोर
तरसता हर पल
नीरज भी प्यासा बिन भानु
पानी के रह अंदर,
ये अपनी अपनी
प्यास है देखो
बिन शशि रात भी
उदास है देखो।
कुसुम कोठरी
बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌👌
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत सृजन कुसुम जी ! प्रकृति पर आपकी लेखनी से सृजित एक और खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबेहतरीन
बहुत सुंदर प्रकृति
तरसता हर पल
ReplyDeleteनीरज भी प्यासा बिन भानु
पानी के रह अंदर,
ये अपनी अपनी
प्यास है देखो..वाह !दी बहुत सुन्दर सृजन
सादर
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteप्रकृति की चितेरी आपकी क़लम से ऐसी मधुर अभिव्यक्ति अपेक्षित है दी।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
पानी के रह अंदर,
ReplyDeleteये अपनी अपनी
प्यास है देखो
बिन शशि रात भी
उदास है देखो।
बेहतरीन रचना ,सादर नमस्कार कुसुम जी
वाह बहुत ही अच्छा लिखा ...
ReplyDeleteये सबकी अपनी अपनी
ReplyDeleteप्यास है देखो
बिन शशि रात भी
उदास है देखो।!
बहुत खूब कुसुम बहन | यही तलाश जीवन का आधार है | सस्नेह