तिश्नगी
तिश्नगी में डूबे रहे राहत को बेक़रार हैं
उजड़े घरौंदें जिनके वे ही तो परेशान हैं ।
रात के क़ाफ़िले चले कौल करके कल का
आफ़ताब छुपा बादलों में क्यों पशेमान है ।
बसा लेना एक संसार नया, परिंदों जैसे
थम गया बेमुरव्वत अब कब से तूफ़ान है ।
आगोश में नींद के भी जागते रहें कब तक
क्या सोच सोच के आखिर अदीब हैरान है ।
शजर पर चाँदनी पसरी थक हार कर
आसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है ।
कुसुम कोठारी।
तिश्नगी में डूबे रहे राहत को बेक़रार हैं
उजड़े घरौंदें जिनके वे ही तो परेशान हैं ।
रात के क़ाफ़िले चले कौल करके कल का
आफ़ताब छुपा बादलों में क्यों पशेमान है ।
बसा लेना एक संसार नया, परिंदों जैसे
थम गया बेमुरव्वत अब कब से तूफ़ान है ।
आगोश में नींद के भी जागते रहें कब तक
क्या सोच सोच के आखिर अदीब हैरान है ।
शजर पर चाँदनी पसरी थक हार कर
आसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है ।
कुसुम कोठारी।
बहुत शानदार
ReplyDeleteबहुत सा शुक्रिया लोकेश जी।
Deleteवाह बेहद शानदार रचना सखी 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है ।
Deleteसस्नेह।
आगोश में नींद के भी जागते रहें कब तक
ReplyDeleteक्या सोच सोच के आखिर अदीब हैरान है ।....वाह !बेहतरीन दी
सादर
ढेर सा स्नेह बहना सदा अनुग्रहित हूं।
Deleteचांदनी थकी रहेगी तो आफताब तो गम होगा ही ... चाँद का अस्तित्व उसी से तो है ...
ReplyDeleteलाजवाब रचना ...
बहुत बहुत आभार नासवा जी इस विधा में आप से दाद मिल गई तो जरूर ठीक ठाक लिखी ही गई होगी।
ReplyDeleteशुक्रिया ।
सादर
शजर पर पसरी थक हार कर
ReplyDeleteआसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है ।
वाह.....,लाजवाब अशआरों से सजी बेहतरीन ग़ज़ल ।
शजर पर चाँदनी पसरी थक हार कर
ReplyDeleteआसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है ।
...वाह...बहुत ख़ूबसूरत अशआर...
शजर पर पसरी थक हार कर
ReplyDeleteआसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है ।
वाह..... बेहतरीन ग़ज़ल ।