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Tuesday, 16 April 2019

भास्कर उतरा सिंधु प्रागंण में


भास्कर उतरा सिंधु प्रांगण में

अपनी तपन से तपा
अपनी गति से थका
लेने विश्राम ,शीतलता
देखो भास्कर उतरा
सिन्धु प्रांगण में
करने आलोल किलोल ,
सारी सुनहरी छटा
समेटे निज साथ
कर दिया सागर को
रक्क्तिम सुनहरी ,
शोभित सारा जल
नभ. भूमण्डल
एक डुबकी ले
फिर नयनो से ओझल,
समाधिस्थ योगी सा
कर साधना पूरी
कल फिर नभ भाल को
कर आलोकित स्वर्ण रेख से
क्षितिज  का श्रृंगार करता
अंबर चुनर रंगता
आयेगा होले होले,
और सारे जहाँ  पर
कर आधिपत्य शान से
सुनहरी सात घोड़े का सवार
चलता मद्धम  गति से
हे उर्जामय नमन तूझे।

     कुसुम कोठारी।




16 comments:

  1. भास्कर उतरा सिंधु प्रागंण में .....,अप्रतिम सृजन ।सूर्योदय से सूर्यास्त तक का मनमोहक वर्णन ।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना गतिमान हुई।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 17अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    Replies
    1. सस्नेह आभार पम्मी जी ।
      आना तो निश्चित है देर सबेर।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/04/2019 की बुलेटिन, " सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. बहुत सुन्दर कुसुम जी ! लेकिन आपके भास्कर को बड़ी क्लिष्ट भाषा पसंद है.

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    1. सादर आभार सर आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।
      वैसे भास्कर दादा स्वयं कितने क्लिष्ट हैं उनका सामना करने का कुछ ताव तो हो शब्दों में भी.
      ऐसा कुछ नही सर बस शब्दों पर प्रयोग मूझे अच्छा लगता है उस चक्कर में सायद कुछ क्लिष्टता आ जाती है।
      सादर ।

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  5. लेने विश्राम ,शीतलता
    देखो भास्कर उतरा
    सिन्धु प्रांगण में
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर ...
    लाजवाब।

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    1. बहुत बहुत आभार सुधा जी।
      सस्नेह ।

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।

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    1. ढेर सा स्नेह आभार बहना।

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  7. बहुत सुन्दर ...लाजवाब।

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  8. सस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है

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  9. फिर नयनो से ओझल,
    समाधिस्थ योगी सा
    कर साधना पूरी
    कल फिर नभ भाल को
    बहुत ही सुंदर.....सादर नमस्कार आप को

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