Monday, 29 April 2019

सभी को कुछ तलाश है


निशिगंधा की भीनी
मदहोश करती सौरभ
चांदनी का रेशमी
उजला वसन
आल्हादित करता
मायावी सा मौसम
फिर झील का अरविंद
उदास गमगीन क्यों
सूरज की चाहत
प्राणो का आस्वादन है
रात कितनी भी
मनभावन हो
कमल को सदा चाहत
भास्कर की लालिमा है
जैसे चांद को चकोर
तरसता हर पल
नीरज भी प्यासा बिन भानु
पानी के रह अंदर,
ये अपनी अपनी
प्यास है  देखो
बिन शशि रात भी
उदास है देखो।

  कुसुम कोठरी

11 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌👌

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  2. बेहद खूबसूरत सृजन कुसुम जी ! प्रकृति पर आपकी लेखनी से सृजित एक और खूबसूरत रचना ।

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  3. वाह !
    बेहतरीन
    बहुत सुंदर प्रकृति

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  4. तरसता हर पल
    नीरज भी प्यासा बिन भानु
    पानी के रह अंदर,
    ये अपनी अपनी
    प्यास है देखो..वाह !दी बहुत सुन्दर सृजन
    सादर

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  5. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति, कुसुम दी।

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  6. प्रकृति की चितेरी आपकी क़लम से ऐसी मधुर अभिव्यक्ति अपेक्षित है दी।
    सुंदर रचना।

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  7. पानी के रह अंदर,
    ये अपनी अपनी
    प्यास है देखो
    बिन शशि रात भी
    उदास है देखो।
    बेहतरीन रचना ,सादर नमस्कार कुसुम जी

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  8. वाह बहुत ही अच्छा लिखा ...

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  9. ये सबकी अपनी अपनी
    प्यास है देखो
    बिन शशि रात भी
    उदास है देखो।!
    बहुत खूब कुसुम बहन | यही तलाश जीवन का आधार है | सस्नेह

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