विरह वेदना राधाजी की
आज राधा की सूनी आंखें
यूं कहती सांवरिया
जाय बसो तुम वृंदावन
कित सूरत मैं काटूं उमरिया।
कहे कनाही एक हम हैं
कहां दो, जित तुम उत मैं
जित तुम राधे, उत हूं मैं
जल्दी आन मिलूंगा मैं ।
समझे न हिय की पीर
झडी मेह और बिजुरिया
कैसो जतन करूं सांवरिया
बिन तेरे बचैन है जियरा ।
बूंदों ने झांझर झनकाई
मन की विरहा बोल गई
बांध रखा था जिस दिल को
बरखा बैरन खोल गई ।
अकुलाहट के पौध उग आये
दाने जो विरहा के बोये
गुंचा गुंचा विरह जगाये
हिय में आतुरता भर आये।
विरह वेदना सही न जावे
कैसे हरी राधा समझावे
स्वयं भी तो समझ न पावे
उर वेदना से हैअघावे।
राधा हरी की अनुराग कथा
विश्व युगों युगों तक गावे गाथा
कुसुम कोठारी।
आज राधा की सूनी आंखें
यूं कहती सांवरिया
जाय बसो तुम वृंदावन
कित सूरत मैं काटूं उमरिया।
कहे कनाही एक हम हैं
कहां दो, जित तुम उत मैं
जित तुम राधे, उत हूं मैं
जल्दी आन मिलूंगा मैं ।
समझे न हिय की पीर
झडी मेह और बिजुरिया
कैसो जतन करूं सांवरिया
बिन तेरे बचैन है जियरा ।
बूंदों ने झांझर झनकाई
मन की विरहा बोल गई
बांध रखा था जिस दिल को
बरखा बैरन खोल गई ।
अकुलाहट के पौध उग आये
दाने जो विरहा के बोये
गुंचा गुंचा विरह जगाये
हिय में आतुरता भर आये।
विरह वेदना सही न जावे
कैसे हरी राधा समझावे
स्वयं भी तो समझ न पावे
उर वेदना से हैअघावे।
राधा हरी की अनुराग कथा
विश्व युगों युगों तक गावे गाथा
कुसुम कोठारी।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१८ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार श्वेता मेरी रचना चुनने के लिये।
Deleteबूंदों ने झांझर झनकाई
ReplyDeleteमन की विरहा बोल गई
बांध रखा था जिस दिल को
बरखा बैरन खोल गई ।
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना सखी
सखी स्नेह है आपका ढेर सा आभार।
Deleteसस्नेह
बेहतरीन प्रस्तुति दीदी जी
ReplyDeleteसादर
ढेर सा स्नेह ढेर सा आभार ।
Deleteकहे कनाही एक हम हैं
ReplyDeleteकहां दो, जित तुम उत मैं
जित तुम राधे, उत हूं मैं
जल्दी आन मिलूंगा मैं ।
प्रिय कुसुम बहन इसी मिथ्या आशा इ सहारे राधा जी विरह की मारी वो नारी बन गई जिसे इस विरह ने ही कान्हा जी से टूट बंधन में बांध दिया | तू नहीं तेरी याद ही सही | सुंदर भावपूर्ण सृजन | बधाई और शुभकामनायें |
रेनू बहन आपकी प्रतिक्रिया सदा विस्तार लिये भावों की विवेचना करती है गहराई तक और लेखन को प्रोत्साहन मिलता है।
Deleteसही कहा आपने अधुरी चाह ही युगों युगों की गाथा बन गयी।
सस्नेह ढेर सा आभार ।
बहुत ही सुंदर रचना ,जय श्री कृष्ण राधेगोविंद नमन ,सादर
ReplyDeleteआभार ज्योति जी।
Deleteसस्नेह ।
भज मन राधे गोविंद।
वाह
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
ReplyDeleteवाह!!कुसुम जी बहुत ही खूबसूरत भाव लिए ,सुंदर सृजन !!
ReplyDeleteविरह वेदना सही न जावे
ReplyDeleteकैसे हरी राधा समझावे
स्वयं भी तो समझ न पावे
उर वेदना से हैअघावे।
बहुत ही सुंदर कुसुम जी ,अंतर्मन में स्वतः ही विरह वेदना महसूस होने लगी ,राधा कृष्ण की विरह गीत से ..
बहुत खूब ....लाजवाब !
ReplyDelete