Followers

Friday, 29 March 2019

आँसू क्षणिकाएं

आँसू क्षणिकाएं

बह-बह नैन परनाल भये
दर्द ना बह पाय
हिय को दर्द रयो हिय में
कोऊ समझ न पाय।
~~
अश्क  बहते  गये
हम दर्द  लिखते  गये
समझ न  पाया  कोई
बंद किताबों में दबते गये ।
~~
रोने वाले सुन आंखों में
आंसू ना लाया कर
बस चुपचाप रोया कर
नयन पानी देख अपने भी
कतरा कर निकल जाते हैं।
~~
दिल के खजानों को
आंखों से न लुटाया कर
ये वो दौलत है जो रूह में
महफूज़ रहती है।
~~
दर्द को यूं सरेआम न कर
कि दर्द अपना नूर ही खो बैठे।
~~
आंखों  से मोती गिरा
हिय को हाल बताय।
लब कितने खामोश रहे
आंखें हाल सुनाय।
~~
   कुसुम कोठारी।



16 comments:

  1. Replies
    1. सादर आभार आदरणीय त्वरित प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।

      Delete
  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/03/2019 की बुलेटिन, " ईश्वर, मनुष्य, जन्म, मृत्यु और मोबाइल लगी हुई सेल्फ़ी स्टिक “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार शिवम जी अभी ब्लॉग बुलेटिन पर नही आ पाई जल्दी ही पहुंचने का प्रयास रहेगा।
      सादर ।

      Delete
  3. वाह कुसुम जी, भाषा की गंगा-जमुनी धारा में दिल का, दर्द का, अश्क़ का, सबका हाल बता दिया आपने !

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार आदरणीय आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया से प्रयोग और प्रयास दोनों को संबल मिला ।
      सही कहा आपने हिंदी उर्दू दोनों की सम्मलित ही है ये क्षणिकाएं ।
      सादर।

      Delete
  4. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति सखी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सखी आपका स्नेह सदा प्रोत्साहित करताहै।
      सस्नेह।

      Delete
  5. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (31-03-2019) को " निष्पक्ष चुनाव के लिए " (चर्चा अंक-3291) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

    --अनीता सैनी













    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सा आभार अनिता जी चर्चा अंक से जुड़ना मेरे लिए बेहद गर्व का विषय है ।
      सस्नेह आभार
      सूचनार्थ लिख रही हूं शायद आपने गलती से रविवार की जगह शनिवार लिख दिया है ।
      सस्नेह ।

      Delete
  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
  7. बह-बह नैन परनाल भये
    दर्द ना बह पाय
    हिय को दर्द रयो हिय में
    कोऊ समझ न पाय।

    बेहतरीन लेखन हेतु साधुवाद । बहुत-बहुत बधाई आदरणीय ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. ढेर सा आभार पुरुषोत्तम जी।
      उत्साह वर्धन के लिये बहुत बहुत आभार।

      Delete
  8. रोने वाले सुन आंखों में
    आंसू ना लाया कर
    बस चुपचाप रोया कर
    नयन पानी देख अपने भी
    कतरा कर निकल जाते हैं।
    बहुत लाजवाब सटीक भावाभिव्यक्ति...
    वाह!!!

    ReplyDelete
  9. प्रिय कुसुम बहन---- आपकी रचना पढकर किसी वरिष्ठ कवि की ये पंक्तियाँ स्मरण हो आयीं ------
    ---भीग जाती हैं जो पलकें कभी तन्हाई में
    काँप उठता हूँ मेरा दर्द कोई जान न ले
    यूँ भी डरता हूँ कि ऐसे में अचानक कोई
    मेरी आँखों में तुम्हें देख के पहचान न ले !


    आंसूं पर बहुत ही भावपूर्ण क्षणिकाएं जो मन को स्पर्श कर जाती हैं | सस्नेह

    ReplyDelete