ऋतु वसंत
देखो धरा पर कैसी
निर्मल चांदनी छाई है
निर्मेघ गगन से शशि
विभा उतर के आयी है ।
फूलों पर कैसी भीनी
गंध सौरभ लहराई है
मलय मंद मधुर मधुर
मादकता ले आयी है ।
मंजु मुकुर मौन तोड़ने
मन वीणा झनकाई है
प्रकृति सज रूप सलज
सरस सुधा सरसाई है ।
हरित धरा मुखरित शाखाएं
कोमल सुषमा बरसाई है
वन उपवन ताल तड़ाग
वल्लरियां मदमाई है।
कुसुम कलिका कल्प की
उतर धरा पर आयी हैं
नंदन कानन उतरा है
लो, वसंत ऋतु आयी है।
कुसुम कोठारी।
बहुत खूब
ReplyDeleteशानदार प्रकृति चित्रण
जी बहुत सा आभार आपका सुंदर प्रतिक्रिया के लिये ।
Deleteकुदरत का बहुत मनोरम रूप निखर कर आया है रचना में कुसुम जी । अप्रतिम सृजन ।
ReplyDeleteआपकी सराहना मन लुभा गई मीना जी ।
Deleteसस्नेह आभार ।
हरित धरा मुखरित शाखाएं
ReplyDeleteकोमल सुषमा बरसाई है
वन उपवन ताल तड़ाग
वल्लरियां मदमाई है।
बहुत सुंदर रचना सखी
ढेर सा स्नेह आभार सखी मनभावन उपस्थिति आपकी।
Deleteसस्नेह।
बसंत ऋतु का बहुत ही सुंदर वर्णन किया हैं आपने कुसुम दी।
ReplyDeleteढेर सा स्नेह ज्योति बहन आपकी सराहना से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteसस्नेह ।
बहुत सा आभार भाई आपकी सराहना के लिए ।अनुग्रहित हुई मैं।
ReplyDeleteसस्नेह।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार आपका।
Deleteमलय मंद मधुर मधुर
ReplyDeleteमादकता ले आयी है ।
वसंत सी मनभावनी ...बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति
वाह!!!
बहुत लाजवाब सजन है आपका, नमन आपकी लेखनी को
ReplyDeleteबहुत लाजवाब सृजन है आपका, नमन आपकी लेखनी को🙏
ReplyDelete