शाम का ढलता सूरज
शाम का ढलता सूरज
उदास किरणें थक कर
पसरती सूनी मुंडेर पर
थमती हलचल धीरे धीरे
नींद के आगोश में सिमटती
वो सुनहरी चंचल रश्मियाँ
निस्तेज निस्तब्ध निराकार
सुरमई संध्या का आंचल
तन पर डाले मुँह छुपाती
क्षितिज के उस पार अंतर्धान
समय का निर्बाध चलता चक्र
कभी हंसता कभी उदास
ये प्रकृति का दृश्य है या फिर
स्वयं के मन का परिदृश्य
वो ही प्रतिध्वनित करता
जो निज की मनोदशा स्वरूप है
भुवन वही परिलक्षित करता
जो हम स्वयं मन के आगंन में
सजाते हैं खुशी या अवसाद
शाम का ढलता सूरज क्या
सचमुच उदास....... ?
कुसुम कोठारी ।
शाम का ढलता सूरज
उदास किरणें थक कर
पसरती सूनी मुंडेर पर
थमती हलचल धीरे धीरे
नींद के आगोश में सिमटती
वो सुनहरी चंचल रश्मियाँ
निस्तेज निस्तब्ध निराकार
सुरमई संध्या का आंचल
तन पर डाले मुँह छुपाती
क्षितिज के उस पार अंतर्धान
समय का निर्बाध चलता चक्र
कभी हंसता कभी उदास
ये प्रकृति का दृश्य है या फिर
स्वयं के मन का परिदृश्य
वो ही प्रतिध्वनित करता
जो निज की मनोदशा स्वरूप है
भुवन वही परिलक्षित करता
जो हम स्वयं मन के आगंन में
सजाते हैं खुशी या अवसाद
शाम का ढलता सूरज क्या
सचमुच उदास....... ?
कुसुम कोठारी ।
समय का निर्बाध चलता चक्र
ReplyDeleteकभी हंसता कभी उदास
ये प्रकृति का दृश्य है या फिर
स्वयं के मन का परिदृश्य
वो ही प्रतिध्वनित करता
जो निज की मनोदशा स्वरूप है बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌👌👌
आपकी भावनात्मक प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा सखी ।
Deleteसस्नेह ।
क्षितिज के उस पार अंतर्धान
ReplyDeleteसमय का निर्बाध चलता चक्र
कभी हंसता कभी उदास
ये प्रकृति का दृश्य है या फिर
स्वयं के मन का परिदृश्य.. वाह सखी बेहतरीन
सादर
बहुत सा आभार सखी उत्साह वर्धन के लिये।
Deleteसस्नेह ।
बहुत ही सुंदर चित्रण साँझ का
ReplyDeleteजी बहुत सा आभार आपका उत्साह वर्धन के लिये
Delete
ReplyDeleteनींद के आगोश में सिमटती
वो सुनहरी चंचल रश्मियाँ
निस्तेज निस्तब्ध निराकार ....., ढलते सूरज के साथ साँझ का मनोरम वर्णन ।
््
बहुत बहुत आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से मन को खुशी मिली
Deleteब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को महाशिवरात्रि पर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 04/03/2019 की बुलेटिन, " महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शिवम जी आपका हृदय तल से आभार, ब्लॉग बुलेटिन में मेरी रचना को शामिल करने के लिए । सादर।
Deleteसुंदर चित्रांकन शब्दों की कुची से।
ReplyDeleteबहुत सा आभार विश्व मोहन जी आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteसादर।
सजाते हैं खुशी या अवसाद
ReplyDeleteशाम का ढलता सूरज क्या
सचमुच उदास....... ?
बहुत-बहुत सुंदर रचना। शुभकामनाएं आदरणीय ।
बहुत बहुत आभार पुरुषोत्तम जी। आपकी सराहना से रचना को सार्थकता मिली।
Deleteसादर।
आपकी लिखी रचना आज ," पाँच लिंकों का आनंद में " बुधवार 6 मार्च 2019 को साझा की गई है..
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in/
पर आप भी आइएगा..धन्यवाद।
पम्मी जी आभार आपके इस स्नेह का
Deleteमेरी रचना को पांच लिंकों में शामिल किया आपने मुझे बहुत हर्ष हुवा ।
कभी हंसता कभी उदास
ReplyDeleteये प्रकृति का दृश्य है या फिर
स्वयं के मन का परिदृश्य
बहुत सुंदर... रचना ,स्नेह
बहुत गहन पंक्तियों पर आपकी निगाह कामिनी जी बहुत सा स्नेह आभार ।
Deleteशाम का ढलता सूरज क्या
ReplyDeleteसचमुच उदास....... ?
....बहुत-बहुत सुंदर रचना।
बहुत बहुत आभार संजय जी। आपकी सराहना से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteबहुत सुंदर ..मौन बिम्ब से सजी मुखर रचना दी..वाह्ह्ह👌
ReplyDeleteस्नेह स्नेह और स्नेह श्वेता मेरे ब्लॉग पर आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से चार चांद सज गये।
Deleteसस्नेह।
जो हम स्वयं मन के आगंन में
ReplyDeleteसजाते हैं खुशी या अवसाद
शाम का ढलता सूरज क्या
सचमुच उदास....... ?
संध्या सुन्दरी का लाजवाब शब्दचित्र...
वाह!!!
बहुत सा आभार सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।
Deleteसस्नेह ।
ढलते सूरज को विविध आयाम से लिखना का सार्थक प्रयास ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ...