Saturday, 16 March 2019

विरह वेदना राधाजी की

विरह वेदना राधाजी की

आज राधा की सूनी आंखें
यूं कहती सांवरिया
जाय बसो तुम वृंदावन
कित सूरत मैं काटूं उमरिया।

कहे कनाही एक हम हैं
कहां दो, जित तुम उत मैं
जित तुम राधे, उत हूं मैं
जल्दी आन मिलूंगा मैं ।

समझे न हिय की पीर
झडी मेह और बिजुरिया
कैसो जतन करूं सांवरिया
बिन तेरे बचैन है जियरा ।

बूंदों ने  झांझर झनकाई
मन की विरहा बोल गई
बांध रखा था जिस दिल को
बरखा बैरन खोल  गई ।

अकुलाहट के पौध उग आये
दाने जो विरहा के बोये
गुंचा गुंचा विरह जगाये
हिय में आतुरता भर आये।

विरह वेदना सही न जावे
कैसे हरी राधा समझावे
स्वयं भी तो समझ न पावे
उर वेदना से हैअघावे।

राधा हरी की अनुराग कथा
विश्व युगों युगों तक गावे गाथा

        कुसुम कोठारी।

15 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १८ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. सस्नेह आभार श्वेता मेरी रचना चुनने के लिये।

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  2. बूंदों ने झांझर झनकाई
    मन की विरहा बोल गई
    बांध रखा था जिस दिल को
    बरखा बैरन खोल गई ।
    बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना सखी

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    1. सखी स्नेह है आपका ढेर सा आभार।
      सस्नेह

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति दीदी जी
    सादर

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    1. ढेर सा स्नेह ढेर सा आभार ।

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  4. कहे कनाही एक हम हैं
    कहां दो, जित तुम उत मैं
    जित तुम राधे, उत हूं मैं
    जल्दी आन मिलूंगा मैं ।
    प्रिय कुसुम बहन इसी मिथ्या आशा इ सहारे राधा जी विरह की मारी वो नारी बन गई जिसे इस विरह ने ही कान्हा जी से टूट बंधन में बांध दिया | तू नहीं तेरी याद ही सही | सुंदर भावपूर्ण सृजन | बधाई और शुभकामनायें |

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    1. रेनू बहन आपकी प्रतिक्रिया सदा विस्तार लिये भावों की विवेचना करती है गहराई तक और लेखन को प्रोत्साहन मिलता है।
      सही कहा आपने अधुरी चाह ही युगों युगों की गाथा बन गयी।
      सस्नेह ढेर सा आभार ।

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  5. बहुत ही सुंदर रचना ,जय श्री कृष्ण राधेगोविंद नमन ,सादर

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    1. आभार ज्योति जी।
      सस्नेह ।
      भज मन राधे गोविंद।

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  6. जी सादर आभार आपका।

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  7. वाह!!कुसुम जी बहुत ही खूबसूरत भाव लिए ,सुंदर सृजन !!

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  8. विरह वेदना सही न जावे
    कैसे हरी राधा समझावे
    स्वयं भी तो समझ न पावे
    उर वेदना से हैअघावे।
    बहुत ही सुंदर कुसुम जी ,अंतर्मन में स्वतः ही विरह वेदना महसूस होने लगी ,राधा कृष्ण की विरह गीत से ..

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