गीतिका
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सूर्य मिलन की चाह
क्षणदा दबे चरणों चली शशिकांत भी मुख मोड़ता।
निशि रंग में निज को समा कुछ छाप भी वह छोड़ता।
रजनी ढली अब जा रही उगती किरण लगती भली।
उजला कहाँ अब चाँद वो जब देह ही निज गोड़ता।
मन चाह लेकर याद में भटका रहा हर रात में।
पर सूर्य तो अनभिज्ञ सा चलता रहा बस दौड़ता।
झरती प्रभा शत हाथ से नित चंद्र के हर भाग से।
मन में यही अभिलाष है कब तार सूरज जोड़ता।
घर एक ही उनका मगर पर मिल नहीं सकते कभी।
गति चाल ही बस है अलग हर दिन सदा हिय तोड़ता।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०४-१२-२०२२ ) को 'सीलन '(चर्चा अंक -४६२४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी बहुत बहुत आभार आपका रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए।
Deleteसादर सस्नेह।
उसी से प्रकाश पाता है, सो जुड़ा है उसी से पर भान नहीं होता, जैसे मन जिस स्रोत से आया है अनजान है उससे
ReplyDeleteगहन भाव लिए सटीक टिप्पणी।
Deleteसस्नेह आभार आपका अनिता जी।
बहुत सुन्दर भावों से सजी गीतिका । सूर्य-चन्द्र के माध्यम से प्रकृति और मानव चिन्तन का मनमोहक शब्द चित्र ।
ReplyDeleteसुंदर मोहक भाव प्रवण प्रतिक्रिया मीना जी सृजन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
आदरणीया कुसुम कोठारी प्रज्ञा जी, नमस्ते 🙏❗️
ReplyDeleteझरती प्रभा शत हाथ से नित चंद्र के हर भाग से।
मन में यही अभिलाष है कब तार सूरज जोड़ता।
प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से जीवन दर्शन की अद्भुत व्याख्या ❗️साधुवाद!
कृपया मेरे ब्लॉग पर मेरी रचना "मैं. ययावारी गीत लिखूँ और बंध - मुक्त हो जाऊं " पढ़ें, वहीँ पर यूट्यूब के दिए गए लिंक पर दृश्यों के संयोजन के साथ देखें और कविता मेरी आवाज़ में सुनें... सादर आभार!--ब्रजेन्द्र नाथ
हृदय से आभार आपका आदरणीय, सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteजी समय समय पर आपके ब्लॉग पर जरूर आती हूँ आदरणीय।
सादर।
ReplyDeleteआदरणीया ,
गाई जा सके ऐसी , हिंदी ग़ज़ल / गीतिका में भावों और लयबद्धता का छंद के साथ न्ययायसंगत अनुबंध देखा |
आज पढ़ी गयी समस्त रचनाओं में से आपकी रचना श्रेष्ठतम लगी | साधु !
जय श्री कृष्ण जी !
जी इस सम्मान के लिए हृदय से आभार आपका, सभी सृजन मोहक हैं सब की अपनी विशिष्ट शैली है।
Deleteपुनः आभार आपका।
सादर।
शाश्वत सत्य को उद्घाटित करती रचना को पढ़कर अच्छा लगा । खूब बधाई
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका कल्पना जी आपको ब्लॉग पर देख अत्यंत हर्ष हुआ।
Deleteसस्नेह।
सुंदर रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteअप्रतिम सृजन
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
वाह!!!!
ReplyDeleteअद्भुत दर्शन गूढ़ चिंतन
लाजवाब सृजन ।
सस्नेह आभार आपका सुधा जी, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह