Friday, 2 December 2022

सूर्य मिलन की चाह


 गीतिका 

11212×4


सूर्य मिलन की चाह


क्षणदा दबे चरणों चली शशिकांत भी मुख मोड़ता।

निशि रंग में निज को समा कुछ छाप भी वह छोड़ता।


रजनी ढली अब जा रही उगती किरण लगती भली।

उजला कहाँ अब चाँद वो जब देह ही निज गोड़ता।


मन चाह लेकर याद में भटका रहा हर रात में।

पर सूर्य तो अनभिज्ञ सा चलता रहा बस दौड़ता।


झरती प्रभा शत हाथ से  नित चंद्र के हर भाग से।

मन में यही अभिलाष है कब तार सूरज जोड़ता।


घर एक ही उनका मगर पर मिल नहीं सकते कभी।

गति चाल ही बस है अलग हर दिन सदा हिय तोड़ता।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

18 comments:


  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०४-१२-२०२२ ) को 'सीलन '(चर्चा अंक -४६२४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका रचना को चर्चा में स्थान देने के लिए।
      सादर सस्नेह।

      Delete
  2. उसी से प्रकाश पाता है, सो जुड़ा है उसी से पर भान नहीं होता, जैसे मन जिस स्रोत से आया है अनजान है उससे

    ReplyDelete
    Replies
    1. गहन भाव लिए सटीक टिप्पणी।
      सस्नेह आभार आपका अनिता जी।

      Delete
  3. बहुत सुन्दर भावों से सजी गीतिका । सूर्य-चन्द्र के माध्यम से प्रकृति और मानव चिन्तन का मनमोहक शब्द चित्र ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुंदर मोहक भाव प्रवण प्रतिक्रिया मीना जी सृजन सार्थक हुआ।
      सस्नेह आभार आपका।

      Delete
  4. आदरणीया कुसुम कोठारी प्रज्ञा जी, नमस्ते 🙏❗️
    झरती प्रभा शत हाथ से नित चंद्र के हर भाग से।
    मन में यही अभिलाष है कब तार सूरज जोड़ता।
    प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से जीवन दर्शन की अद्भुत व्याख्या ❗️साधुवाद!

    कृपया मेरे ब्लॉग पर मेरी रचना "मैं. ययावारी गीत लिखूँ और बंध - मुक्त हो जाऊं " पढ़ें, वहीँ पर यूट्यूब के दिए गए लिंक पर दृश्यों के संयोजन के साथ देखें और कविता मेरी आवाज़ में सुनें... सादर आभार!--ब्रजेन्द्र नाथ

    ReplyDelete
    Replies
    1. हृदय से आभार आपका आदरणीय, सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      जी समय समय पर आपके ब्लॉग पर जरूर आती हूँ आदरणीय।
      सादर।

      Delete

  5. आदरणीया ,
    गाई जा सके ऐसी , हिंदी ग़ज़ल / गीतिका में भावों और लयबद्धता का छंद के साथ न्ययायसंगत अनुबंध देखा |
    आज पढ़ी गयी समस्त रचनाओं में से आपकी रचना श्रेष्ठतम लगी | साधु !
    जय श्री कृष्ण जी !

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी इस सम्मान के लिए हृदय से आभार आपका, सभी सृजन मोहक हैं सब की अपनी विशिष्ट शैली है।
      पुनः आभार आपका।
      सादर।

      Delete
  6. शाश्वत सत्य को उद्घाटित करती रचना को पढ़कर अच्छा लगा । खूब बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका कल्पना जी आपको ब्लॉग पर देख अत्यंत हर्ष हुआ।
      सस्नेह।

      Delete
  7. सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

      Delete
  8. अप्रतिम सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

      Delete
  9. वाह!!!!
    अद्भुत दर्शन गूढ़ चिंतन
    लाजवाब सृजन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार आपका सुधा जी, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह

      Delete