Monday, 28 November 2022

सृजन का बाना


 सृजन का बाना


अनुपम भाव सृजन गढ़ता जब

प्रतिभा से आखर मिलता 

ओजस मूर्ति कलित गढ़ने को

शिल्पी ज्यूँ काठी छिलता।


गागर आज भरा रस भीना

मधु सागर जाए छलका

बादल ओट हटा कर देखो

शशि मंजुल अम्बर झलका

बैठा कौन रचे यह गाथा

या भेदक नव पट सिलता।।


कविगण रास कवित से खेले

भूतल नभ तक के फेरे

अंबर नील भरा सा दिखता

रूपक गंगा के घेरे

मोहक कल्प तरू लहराए

रचना का डोला हिलता।।


कर श्रृंगार नये बिंबों से

रचना इठलाती प्यारी

भूषण धार चले जब कविता

दुल्हन सी लगती न्यारी 

महके काव्य सुमन पृष्ठों पर

उपवन पुस्तक का खिलता।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

13 comments:

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  2. जी कुसुम बहन आखर से पुस्तक की ये रचना यात्रा सरल कतई नहीं होती | शब्द -शब्द कवि मन की भाव संपदा संग्रहित होती है तब कोई पुस्तक अस्तित्व में आती है | और कविता को दुल्हन की तरह सजाने का हुनर जिस कवि में हो वही तो साहित्य में अपना नाम कर पाता है | सस्नेह |

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    1. रेणु बहन आपकी श्र्लाघ्य टिप्पणी सदा मन मोहती है साथ ही लेखन को नए आयाम देती है।
      सस्नेह आभार आपका।

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  3. आदरणीया मैम, बहुत ही सुंदर कविता । एक कवि कितने प्रेम और परिश्रम से अपने भावों को एक कविता में पिरोता / पिरोती है , इसका बहुत ही सुंदर वर्णन । सच आज कल बहुत लोग साहित्य को महत्व नहीं देते, कविता और कहानी लेखन को कुछ मूढ़ लोग समय को व्यर्थ करना मानते हैं पर सच तो यह है कि साहित्य ही वह वस्तु है जो मानव की मानवता को बनाए रखता है और हमारी संस्कृति को सुरक्षित सँजो कर रखे हुए है । कवि के द्वारा कविता का संचार होना उस पर साक्षात माँ सरस्वती की कृपया है, उनकी कृपया के बिना यह संभव नहीं । इस सुंदर रचना के लिएर हार्दिक आभार व आपको सादर प्रणाम ।

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    1. वाह! अनंता जी बहुत सुंदर बात कही आपने साथ हीआपने सृजन को समर्थन भी दिया हृदय तल से आभार आपका।
      सस्नेह।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०१-१२-२०२२ ) को 'पुराना अलबम - -'(चर्चा अंक -४६२३ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. सादर आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को सांझा करने के लिए।
      सादर सस्नेह।

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  5. आदरणीय !
    उम्दा सृजन !
    गागर आज भरा रस भीना

    मधु सागर जाए छलका

    बादल ओट हटा कर देखो

    शशि मंजुल अम्बर झलका

    बैठा कौन रचे यह गाथा

    या भेदक नव पट सिलता।।


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    1. उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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    2. उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सादर।

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  6. कविगण रास कवित से खेले

    भूतल नभ तक के फेरे

    अंबर नील भरा सा दिखता

    रूपक गंगा के घेरे

    वाह!!!!
    कुछ भी लिख लेने वाले कवि की कविता और भावों की गहराई क्या जाने...
    लाजवाब सृजन।

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  7. रचना के भावों को समर्थन देने के लिए हृदय से आभार आपका सुधा जी।
    सस्नेह।

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