Saturday, 26 November 2022

बैठे ठाले


 बैठे ठाले


बैठे ठाले स्वेटर बुन लो

फंदे गूंथ सलाई से।


स्वेटर की तो बात दूर हैं

घर के काम लगे भारी

झाड़ू दे तो कमर मचकती

तन पर बोझ लगे सारी

रोटी बननी आज कठिन है

बेलन छोड़ कलाई से।।


पिट्जा बर्गर आर्डर कर दो

कोक पैप्सी मंगवाना

खटनी करते अब हारी मैं

पार्लर सखी संग जाना

आइसक्रीम तैयार मिले

झंझट कौन मलाई से।।


चलभाष का व्यसन अति भारी

उसमें जी उलझा रहता

कुछ देरी में काम सभी हो

बार-बार मन यह कहता

लोभ भुलावे अंतस अटका 

भागा समय छलाई से।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

19 comments:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 28 नवम्बर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. हृदय से आभार आपका संगीता जी रचना को विशेष प्रस्तुति में चयन करने के लिए।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  2. मोबाइल से फुर्सत मिलेगी तब तो स्वेटर की बारी आएगी, पर यहाँ तो आपने किचन से भी भाग जाने की बात कह दी है, तब तो हाथों का काम केवल अपलोड करना ही रह गया है

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    1. जी बस बैठे डाले कुछ हास्य व्यंग लिख डाला।
      सस्नेह आभार आपका सक्रिय प्रतिक्रिया के लिए।

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  4. आदरणीया मैम, वर्तमान परस्थितियों में बहुत ही विचारपूर्ण रचना। हम आज कल मोबाइल, कंप्यूटर और टीवी पर इतना समय व्यर्थ करते हैं कि अन्य आवश्यक और रचनात्मक कार्य के लिए सनी ही नहीं बचता। वर्चुअल दुनिया को छोड़ कर रियल दुनिया में कुछ करने का समय है। सादर प्रणाम, एक अनुरोध और, मैं ने एक नया ब्लॉग आरम्भ किया है, चल मेरी डायरी। मेरा अनुरोध है उस पर आ कर मेरे लेख पढ़ें और अपना आशीष दें।

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  5. चलभाष के व्यसन पर अच्छी खासी खिंचाई कर डाली आपने दी।
    अति सुंदर हास्य-व्यंग्य रचना दी।
    सभी साहित्यिक विधाओं में सिद्ध हस्त हो गयी हैं आप सचमुच दी प्रशंसनीय है।
    सस्नेह प्रणाम दी
    सादर।

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    1. हृदय से आभार आपका श्वेता आपकी प्रतिक्रिया सदा मन को सुकून से भर देती है ।
      सस्नेह आभार बहना।

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  6. वाह!!!!
    चलभाष ने निठल्ला बना दिया घर के सभी काम तो भारी लगेंगे ही फिर पिज्जा वर्गर ऑडर हो गया तो कीचन में जाने की जरूरत ही क्या
    आज के परिपेक्ष्य को दर्शाता अद्भुत एवं लाजवाब सृजन

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी , बस यूं ही कुछ हास्य व्यंग लिख दिया, बैठे ठाले।
      आपका समर्थन मिला लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  7. 👌👌👌👌😃😃😃😃
    बहुत खूब प्रिय कुसुम बहन।यहाँ भी कलम चला दी है आपने।इस दुष्ट चलभास ने दुनिया से जोड़ा तो गृहस्थी का रंग फीका कर दिया।आज की इस नमकीन सच्चाई को बड़ी सरलता से समझा दिया आपने👌🙏

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    1. सस्नेह आभार आपका रेणु बहन सब ओर एक सा हाल हैं हम भी इस से कहां अछूते रह पाए।
      आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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    1. सुप्रभात कुसुम जी ! पिज़्ज़ा , बर्गर और पार्लर की ख़ूब कही .., आज के लाइफ-स्टाइल कोा सहज और सजीव चित्रांकन । अभिनव एवं अभिराम सृजन ।

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    2. हृदय से आभार आपका मीना जी भावों को समर्थन देती प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  9. बहुत सुंदर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  10. आज के परिदृश्य पर पैनी नज़र रख बहुत ही रोचक और सामयिक रचना रची है आपने ।बधाई कुसुम जी ।

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  11. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
    आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
    सस्नेह।

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