Wednesday, 7 December 2022


 मोहिनी 


चंद्रमुख आभा झरे

रूपसी मन मोहिनी

उच्च शोभित भाल है

मीन दृग में चाँदनी।।


देह चंदन महकता

गाल पाटल रच रहे

नाशिका शुक चोंच सम

भाव शुचिता के गहे

तुण्ड़ कोमल मखमली 

ओष्ठ रंगत लोहिनी।।


रूप पुष्पित पुष्प ज्यों

भृंग लट उड़ते मधुप

माधुरी लावण्य है

चाल चलती है अनुप

देख परियाँ भी लजाए

स्वर्ण काया सोहिनी।


बेल फूलों की नरम 

कल्पना कवि लेख सी

किस भुवन की लावणी

श्रेष्ठ दुर्लभ रेख सी

मेह हो अनुराग का

कामिनी प्रियदर्शिनी।। 


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 12 दिसंबर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. जी हृदय से आभार आपका आदरणीय संगीता जी पाँचलिंकों पर रचना को देखना सदैव सुखद है।
      सस्नेह

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  2. नाशिका शुक चोंच सम

    भाव शुचिता के गहे

    तुण्ड़ कोमल मखमली

    ओष्ठ रंगत लोहिनी।।

    वाह!!!!

    रूप पुष्पित पुष्प ज्यों

    भृंग लट उड़ते मधुप

    अद्भुत उपमाएं!!!
    रूपसी सी लाजवाब सौन्दर्य
    क्या बात...

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    1. रचना को सराहना मिली आपकी सु लेखनी से सुधाजी सृजन सार्थक हुआ।
      स्नेह आभार आपका।
      सस्नेह।

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  3. अद्भुत, अप्रतिम,अकल्पनीय उपमाओं से सजी
    अनूठी कृति दी।
    प्रणाम
    सादर।

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    1. हृदय से आभार प्रिय श्वेता आपको अपने ब्लॉग पर देख मन सदा हर्षित होता है।
      सस्नेह।

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  4. बहुत सुंदर रचना कुसुम जी, नायिका का श्रृंगार वर्णन बेहद उम्‍दा और वो भी शुद्ध हिंदी में...अद्भुत

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी आपकी स्नेहिल टिप्पणी रचना के लिए सदा उर्जा का काम करती है।
      सस्नेह।

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  5. बेल फूलों की नरम

    कल्पना कवि लेख सी

    किस भुवन की लावणी

    श्रेष्ठ दुर्लभ रेख सी

    मेह हो अनुराग का

    कामिनी प्रियदर्शिनी।। वाह !
    सुंदर उपमाओं से सजी सुंदर रचना ।

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    1. सस्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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