गीतिका:1222×4
शशधर
उठा राकेश निंद्रा से सकल दिशि ज्योत्सना छाई।
नवल उस ज्योति की आभा क्षितिज से भूमि तक आई।।
रजत की इक वरूथी पर सुधाधर बैठ आया है।
निशा का नील आनन भी चमक से हो रहा झाई।।
चमाचम हीर जग बुझ कर कलाधर को नमन करते।
वहाँ मंदाकिनी भी साथ अपने कर चँवर लाई।।
अहा इस रात का सौंदर्य वर्णन कौन कर सकता।
कवित की कल्पना में भी न ऐसी रात ढल पाई।।
रजत के ताल बैठा शशि न जाने कब मचल जाए।
भ्रमित से स्नेह बंधन में जकड़ कर रात गहराई।।
'कुसुम' इस रात पर मोहित निहारे चाँद अनुपम को।
हवाओं ने मधुर स्वर में सरस सी रागिनी गाई।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
रजत के ताल बैठा शशि न जाने कब मचल जाए।
ReplyDeleteभ्रमित से स्नेह बंधन में जकड़ कर रात गहराई।।
कमाल का सृजन ...अत्यंत मनमोहक
लाजवाब
वाह!!!!
सस्नेह आभार आपका सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया का सदा इंतजार रहता है ।
Deleteसस्नेह।
आपकी लिखी रचना सोमवार 26 दिसंबर 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जी बहुत बहुत आभार आपका मैं अनुग्रहित हूँ।
Deleteसादर सस्नेह।
सुंदर रचना 👌👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका रूपा जी।
Deleteक्या खूबसूरत शब्द-विन्यास है दी वाह्ह अनुपम,अप्रतिम,मनमोहक मन मुग्ध हो गया।
ReplyDeleteअति सुंदर सृजन दी।
सादर।
सस्नेह आभार आपका श्वेता स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया।
Deleteबेहतरीन सृजन !!
ReplyDeleteजी उत्साह वर्धन के लिए हृदय से आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
प्रकृति का सुन्दर और भावपूर्ण वर्णन प्रिय कुसूम बहन
ReplyDeleteक्रिसमस और नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ♥️🙏
सस्नेह आभार आपका रेणु बहन।
Deleteआपकों भी अनेक शुभकामनाएं 🌹