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Saturday, 13 August 2022

बाल गीतिका घर


 बाल गीतिका

मापनी:-122 122 122


एक घर बनाएँ।


चलो एक घर हम बनाएँ।

उसे साथ मिलकर सजाएँ।।


जहाँ बाग छोटा महकता।

वहाँ कुछ सुमन भी खिलाएँ।।


भ्रमर की जहाँ गूँज प्यारी।

वहाँ तितलियाँ खिलखिलाएँ।।


जहाँ एक सोता सुहाना।

वहाँ मछलियाँ मुस्कुराएँ।।


चहक पाखियों की मधुर हो।

सरस गीत कोयल सुनाएँ।।


महल सा नहीं बस सदन हो।

जहाँ साथ हम गुनगुनाएँ।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

10 comments:

  1. बहुत सुंदर गीतिका, कुसुम दी।

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    1. हृदय से आभार आपका ज्योति बहन।
      सस्नेह।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-8-22} को राष्ट्र उमंगें वेगवान हुई"(चर्चा अंक 4521) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    1. हृदय से आभार आपका कामिनी जी।
      सस्नेह।

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  3. बाल मन को प्रेरित करती सुंदर गीतिका ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
      सस्नेह।

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  4. आदरणीया कुसुम कोठारी जी, 🙏❗️
    बहुत सुंदर रचना! इन पंक्तियों को उद्धरित करते हुए अपार हर्ष हो रहा है.
    महल सा नहीं बस सदन हो।
    जहाँ साथ हम गुनगुनाएँ।।
    साधुवाद!--ब्रजेन्द्र नाथ

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    1. आपकी विस्तृत उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मन में हर्ष हुआ आदरणीय।
      हृदय से आभार आपका।
      सादर।

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  5. सुन्दर, सरल और मधुर बाल गीतिका। हृदय को सुकून देने वाले सृजन के लिए आपको। बहुत-बहुत बधाई।

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    1. जी हृदय से आभार आपका।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      और उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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