कष्ट का अँधेरा
दर्द की झोली भरी है
नाद के विस्तार तक
नित्य की इस दौड़ में बस
भूलता अधिकार तक।
दु:ख के प्रतिमान बदले
भय भयंकर छा रहा
बीतना कितना कठिन पर
काल बीता जा रहा
कष्ट का हँसता अँधेरा
बादलों के पार तक।।
आँधियों की किरकिरी पर
आँख अब झुकती नही
शूल से हों पैर घायल
चाल अब रुकती नही
पीर तिल तिल में बसी फिर
भोगना दिन चार तक।।
चार दिन का ये समय भी
बीतता है श्राप ज्यों
आदमी पर काल हावी
यम चढ़े हैं भैंस क्यों
बाँब पर बैठे अभागे
नाग की फूत्कार तक।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
वाह।
ReplyDeleteशानदार।
जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर
चार दिन का ये समय भी
ReplyDeleteबीतता है श्राप ज्यों
आदमी पर काल हावी
यम चढ़े हैं भैंस क्यों
आज तो तेवर कुछ अलग हैं । कष्ट के समय चारों ओर अंधेरा ही नज़र आता है । सशक्त शब्दों में ढाला है ।
बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी।
Deleteआपको पसंद आया लेखन सार्थक हुआ ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सदा नये प्रवाह लेता है।
ReplyDeleteआँधियों की किरकिरी पर
आँख अब झुकती नही
शूल से हों पैर घायल
चाल अब रुकती नही
पीर तिल तिल में बसी फिर
भोगना दिन चार तक।।...सही कहा जीवन में इतनी आंधियां आती हैं,अगर पकड़ के बैठो तो राह बड़ी कठिन हो जाती है,अतः मनुष्य को हर विषम परिस्थिति में चलते रहना है, सुन्दर सार्थक रचना।
बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा सी,आपकी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से रचना स्वयं संजीव हो उठती है ।
Deleteबहुत बहुत सा स्नेह।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९-०८-२०२१) को
"कृष्ण सँवारो काज" (चर्चा अंक-४१५१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
कृपया बुधवार को सोमवार पढ़े।
Deleteसादर
जी बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा में शामिल होना सदा गर्व का विषय है, ।
Deleteसादर सस्नेह।
"बीतना कितना कठिन पर काल बीतता जा रहा।" वाह। यथार्थ का सजीव चित्रण! आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। सादर।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर।
सुंदर अभिव्यक्ति भावों की।👌
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका,
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
आँधियों की किरकिरी पर
ReplyDeleteआँख अब झुकती नही
शूल से हों पैर घायल
चाल अब रुकती नही
पीर तिल तिल में बसी फिर
भोगना दिन चार तक।।.
सही कहा आदत सी बन गयी जब आँखों को किरकिरी झेलने की...
कमाल का नवगीत कुसुम जी!दुख को भावों की अद्भुत व्यंजनाएं ....
यम चढ़े है भैस क्यों...!!!!
लाजवाब बस लाजवाब।
सुधा जी क्या कहूँ आपकी प्रतिक्रिया के लिए , आपकी प्रतिक्रिया सदा मुझ में नया उत्साह भरती है ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका ।
सस्नेह।
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
वह, सुन्दर रचना!
ReplyDeleteकृपया 'वाह' पढ़ा जाए।
Deleteआपकी कविताओं को पढ़कर मनन करने को ही जी चाहता है कुसुम जी, टिप्पणी करने को नहीं।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका , आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
ReplyDeleteसादर।
जी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी ।
ReplyDeleteसादर।