Saturday, 7 August 2021

कष्ट का अँधेरा

कष्ट का अँधेरा


दर्द की झोली भरी है 

नाद के विस्तार तक 

नित्य की इस दौड़ में बस

भूलता अधिकार तक।


दु:ख के प्रतिमान बदले 

भय भयंकर छा रहा 

बीतना कितना कठिन पर 

काल बीता जा रहा 

कष्ट का हँसता अँधेरा

बादलों के पार तक।।


आँधियों की किरकिरी पर 

आँख अब झुकती नही 

शूल से हों पैर घायल 

चाल अब रुकती नही 

पीर तिल तिल में बसी फिर 

भोगना दिन चार तक।।


चार दिन का ये समय भी 

बीतता है श्राप ज्यों  

आदमी पर काल हावी 

यम चढ़े हैं भैंस क्यों 

बाँब पर बैठे अभागे 

नाग की फूत्कार तक।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

 

22 comments:

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर ‌

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  2. चार दिन का ये समय भी

    बीतता है श्राप ज्यों

    आदमी पर काल हावी

    यम चढ़े हैं भैंस क्यों

    आज तो तेवर कुछ अलग हैं । कष्ट के समय चारों ओर अंधेरा ही नज़र आता है । सशक्त शब्दों में ढाला है ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी।
      आपको पसंद आया लेखन सार्थक हुआ ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सदा नये प्रवाह लेता है।

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  3. आँधियों की किरकिरी पर

    आँख अब झुकती नही

    शूल से हों पैर घायल

    चाल अब रुकती नही

    पीर तिल तिल में बसी फिर

    भोगना दिन चार तक।।...सही कहा जीवन में इतनी आंधियां आती हैं,अगर पकड़ के बैठो तो राह बड़ी कठिन हो जाती है,अतः मनुष्य को हर विषम परिस्थिति में चलते रहना है, सुन्दर सार्थक रचना।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा सी,आपकी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से रचना स्वयं संजीव हो उठती है ।
      बहुत बहुत सा स्नेह।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९-०८-२०२१) को
    "कृष्ण सँवारो काज" (चर्चा अंक-४१५१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. कृपया बुधवार को सोमवार पढ़े।

      सादर

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    2. जी बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा में शामिल होना सदा गर्व का विषय है, ।
      सादर सस्नेह।

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  5. "बीतना कितना कठिन पर काल बीतता जा रहा।" वाह। यथार्थ का सजीव चित्रण! आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। सादर।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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  6. सुंदर अभिव्यक्ति भावों की।👌

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका,
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  7. आँधियों की किरकिरी पर
    आँख अब झुकती नही
    शूल से हों पैर घायल
    चाल अब रुकती नही
    पीर तिल तिल में बसी फिर
    भोगना दिन चार तक।।.
    सही कहा आदत सी बन गयी जब आँखों को किरकिरी झेलने की...
    कमाल का नवगीत कुसुम जी!दुख को भावों की अद्भुत व्यंजनाएं ....
    यम चढ़े है भैस क्यों...!!!!
    लाजवाब बस लाजवाब।

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    1. सुधा जी क्या कहूँ आपकी प्रतिक्रिया के लिए , आपकी प्रतिक्रिया सदा मुझ में नया उत्साह भरती है ।
      बहुत बहुत आभार आपका ।
      सस्नेह।

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  8. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  9. आपकी कविताओं को पढ़कर मनन करने को ही जी चाहता है कुसुम जी, टिप्पणी करने को नहीं।

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  10. बहुत बहुत आभार आपका , आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
    सादर।

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  11. जी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी ।
    सादर।

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