बंधन बंधन क्यों करे, मन के सारे बंध।
आत्म सुधारो हे गुणी, तोड़ मोह के फंद।।
तोड़ मोह के फंद, लगन रख प्रभु में भाई।
सँवरे दिन भी आज, पटे भव भव की खाई।।
कहे कुसुम सुन बात, रहेगा जीवन गंधन।
इधर उधर मत झांक, लगा ले प्रभु से बंधन।।
गंधन-सोना
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteअद्भुत अद्भुत अद्भुत...पूरा का पूरा आध्यात्म इन पंक्तियों में सिमट आया है
ReplyDeleteतोड़ मोह के फंद, लगन रख प्रभु में भाई।
सँवरे दिन भी आज, पटे भव भव की खाई।।
बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी, आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना सार्थकता पा गई ।
Deleteसस्नेह।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-08-2021को चर्चा – 4,161 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
जी बहुत बहुत आभार आपका, मैं मंच पर जरूर हाज़िर होऊंगी।
Deleteसादर।
ReplyDeleteबंधन बंधन क्यों करे, मन के सारे बंध।
आत्म सुधारो हे गुणी, तोड़ मोह के फंद..वाह!बहुत सुंदर।
सादर
सस्नेह आभार आपका, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
बेहतरीन कुंडली छंद .... मोह छूटता कहाँ ?
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी।
Deleteआपको कुंडलियाँ छंद पसंद आया लेखन सार्थक हुआ।
सादर।
बहुत ही बढ़िया कहा । वैसे जब कुसुम जी कहे तो सबको सुनना ही चाहिए । साध ही गुनना भी चाहिए । अति सुन्दर ।
ReplyDeleteमन को मोहती प्रतिक्रिया अमृता जी ,
Deleteसुनना गुनना दोनों ही एक सुंदर ठहराव है।
सस्नेह।
अच्छी कुंडलिया
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय,
Deleteआपको पुनः सक्रिय देख मन आह्लादित हुआ।
सादर।
वाह
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
वाह ! बहुत सुंदर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
सस्नेह ।
वाह,शानदार कुंडलिया। बहुत बधाई आपको।
ReplyDeleteजी सस्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी।
Deleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
जी, बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
ReplyDeleteसादर।