दुर्मिल सवैया
तुलसी मानस और साधक।
नव अच्युत जन्म लिये जग में, गुरु संत करे अभिनंदन हो।
तुलसी कर से अवतीर्ण हुई, जन मानस भजता छंदन हो।
यह पावन राम कथा जग में, भव बंध निवारण वंदन हो।
घट राम विराज रहे जिन के, उनका महके पथ चंदन हो।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आप तो ज्ञान का अक्षय भंडार हैं कुसुम जी। बस यूं ही आप हमें अपनी रचनाओं से आह्लादित भी करती रहें तथा हमारा ज्ञान-संवर्द्धन भी करती रहें। हार्दिक आभार एवं अभिनंदन आपका।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
सादर।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२१-०८-२०२१) को
'चलो माँजो गगन को'(चर्चा अंक- ४१६३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए। मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
Deleteसस्नेह,सादर।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर गेय सवैया।
ReplyDeleteजी जिज्ञासा जी सवैया वैसे भी अपनी घेरता के लिए अग्रणीय है, उस में दुर्मिल तो बहुत सुंदर लय और गेयता रखता है।
Deleteबहुत बहुत स्नेह आभार आपका।
घेरता को गेयता पढ़ें कृपया।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
सादर।
मधुरम् मधुरम् । चंदनम् सुगंधितम् । अति सुन्दरम् ।
ReplyDeleteवाह!
Deleteमन मोहक प्रतिक्रिया अमृता जी दिल प्रसन्न हुआ।
सस्नेह आभार आपका।
वाह, बहुत ही मनभावन सवैया!
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteलेखन सार्थक हुआ आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से।
सादर।
तुलसी का वंदन हो । सुंदर कृति ।
ReplyDeleteजी संगीता जी, मानस के रूप में तुलसी जी ने वो निधि दी है संसार को कि वो सदा को अमर हो गये,वंदन के योग्य हैं तुलसी सदा सदैव।
Deleteसादर आभार आपका।