Friday, 20 August 2021

तुलसी मानस और साधक


 दुर्मिल सवैया

तुलसी मानस और साधक।


नव अच्युत जन्म लिये जग में, गुरु संत करे अभिनंदन हो।

तुलसी कर से अवतीर्ण हुई, जन मानस भजता छंदन हो।

यह पावन राम कथा जग में, भव बंध निवारण वंदन हो।

घट राम विराज रहे जिन के, उनका महके पथ चंदन हो।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

17 comments:

  1. आप तो ज्ञान का अक्षय भंडार हैं कुसुम जी। बस यूं ही आप हमें अपनी रचनाओं से आह्लादित भी करती रहें तथा हमारा ज्ञान-संवर्द्धन भी करती रहें। हार्दिक आभार एवं अभिनंदन आपका।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२१-०८-२०२१) को
    'चलो माँजो गगन को'(चर्चा अंक- ४१६३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए। मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह,सादर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  4. बहुत सुंदर गेय सवैया।

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    1. जी जिज्ञासा जी सवैया वैसे भी अपनी घेरता के लिए अग्रणीय है, उस में दुर्मिल तो बहुत सुंदर लय और गेयता रखता है।
      बहुत बहुत स्नेह आभार आपका।

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    2. घेरता को गेयता पढ़ें कृपया।

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  5. बहुत बहुत सुन्दर

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
      उत्साह वर्धन हुआ।
      सादर।

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  6. मधुरम् मधुरम् । चंदनम् सुगंधितम् । अति सुन्दरम् ।

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    1. वाह!
      मन मोहक प्रतिक्रिया अमृता जी दिल प्रसन्न हुआ।
      सस्नेह आभार आपका।

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  7. वाह, बहुत ही मनभावन सवैया!

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      लेखन सार्थक हुआ आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से।
      सादर।

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  8. तुलसी का वंदन हो । सुंदर कृति ।

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    1. जी संगीता जी, मानस के रूप में तुलसी जी ने वो निधि दी है संसार को कि वो सदा को अमर हो गये,वंदन के योग्य हैं तुलसी सदा सदैव।
      सादर आभार आपका।

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