कोरे मन के कागज पर
चलो एक गीत लिखते हैं,
डूबाकर तूलिका भावों में
चलो एक गीत लिखते हैं ।
मन की शुष्क धरा पर
स्नेह नीर सिंचन कर दें,
भुला करके सभी शिकवे
चलो एक गीत लिखते हैं।
शब्द तुम देना चुन-चुन कर
मैं सुंदर अर्थों से सजा दूंगी,
सरगम की किसी धुन पर
चलो एक गीत लिखते हैं।
हवाओं में कोई सरगम
मदहोशी हो फिजाओं में,
बैठ कर किसी तट पर
चलो एक गीत लिखते हैं।
अगर मैं भूलूं तो तुम गाना
संग मेरे तुम भी गुनगुनाना,
गुजरते संग-संग राहों पर
चलो एक गीत लिखते हैं।
कुसुम कोठारी।
चलो एक गीत लिखते हैं,
डूबाकर तूलिका भावों में
चलो एक गीत लिखते हैं ।
मन की शुष्क धरा पर
स्नेह नीर सिंचन कर दें,
भुला करके सभी शिकवे
चलो एक गीत लिखते हैं।
शब्द तुम देना चुन-चुन कर
मैं सुंदर अर्थों से सजा दूंगी,
सरगम की किसी धुन पर
चलो एक गीत लिखते हैं।
हवाओं में कोई सरगम
मदहोशी हो फिजाओं में,
बैठ कर किसी तट पर
चलो एक गीत लिखते हैं।
अगर मैं भूलूं तो तुम गाना
संग मेरे तुम भी गुनगुनाना,
गुजरते संग-संग राहों पर
चलो एक गीत लिखते हैं।
कुसुम कोठारी।
बेहद खूबसूरत गीत लिखा दी।
ReplyDeleteसुंदर शब्द विन्यास और भाव अति सुंदर।
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मनोमालिन्य धुल जाये
स्नेहिल बताशे घुल जाये
प्रीत के इत्र छिड़ककर
महकता संगीत लिखते हैं
चलो एक गीत लिखते हैं।
ऐसे प्रेम में डूबे गीत लिखे ही जाने चाहिए।
ReplyDeleteलाजवाब
वाह! बहुत कोमल अहसास!!!
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-11-2019) को "सर कढ़ाई में इन्हीं का, उँगलियों में, इनके घी" (चर्चा अंक- 3523) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
ReplyDeleteशब्द तुम देना चुन-चुन कर
मैं सुंदर अर्थों से सजा दूंगी,
सरगम की किसी धुन पर
चलो एक गीत लिखते हैं।वाहहहह अद्भुत प्रस्तुति 👌
अगर मैं भूलूं तो तुम गाना
ReplyDeleteसंग मेरे तुम भी गुनगुनाना,
गुजरते संग-संग राहों पर
चलो एक गीत लिखते हैं।
बहुत सुन्दर गीत लिखा है कुसुम जी..सरस और मधुर सृजन ।
बहुत सुन्दर ... आशा के बोल और गीत की स्वर लहरी ... दोनों मिल कर दिशा बदल दें ... आओ गीत बुने ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
आपके गतिशील सृजनात्मकता की कायल हो गई हूं आप लगभग रोज ही एक नई कविता लेकर आती है और ऐसा कभी भी नहीं लगता कि वह पुरानी कविता से मेल खा रही हो हमेशा एक नए विषय पर बेहद खूबसूरत शब्दों के साथ एक नई कविता अपने पटल पर स्थापित करती हो यह कविता भी बहुत अच्छी है
ReplyDeleteवाह!वाह!दी जी बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteकुछ चुनते है धरा के आँगन से
कुछ अंतरमन का लिखते है
गुनगुनाएं जमाना सदियों तक
चलो सखी ऐसा एक गीत लिखते है.
सादर
वाह्ह्ह्ह्हह!
ReplyDeleteआदरणीया दीदी जी बेहद खूबसूरत मनभावन गीत 👌
आपका हर सृजन आनंदित करता है।
सादर नमन 🙏
सुन्दर रचना
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