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Thursday, 21 November 2019

दर्पण दर्शन

दर्पण दर्शन

आकांक्षाओं के शोणित
बीजों का नाश
संतोष रूपी भवानी के
हाथों सम्भव है
वही तृप्त जीवन का सार है।

"आकांक्षाओं का अंत "।

ध्यान में लीन हो
मन में एकाग्रता हो
मौन का सुस्वादन
पियूष बूंद सम
अजर अविनाशी।

शून्य सा, "मौन"।

मन की गति है
क्या सुख क्या दुख
आत्मा में लीन हो
भव बंधनो की
गति पर पूर्ण विराम ही।

परम सुख,.. "दुख का अंत" ।

पुनः पुनः संसार
में बांधता
अनंतानंत भ्रमण
में फसाता
भौतिक संसाधन।
 यही है " बंधन"।

स्वयं के मन सा
दर्पण
भली बुरी सब
दर्शाता
हां खुद को छलता
मानव।
" दर्पण दर्शन "।

कुसुम कोठारी।

5 comments:

  1. बेहद उम्दा....

    आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है|

    https://hindikavitamanch.blogspot.com/2019/11/I-Love-You.html

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  2. बहुत सुंदर रचना सखी

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (22-11-2019 ) को ""सौम्य सरोवर" (चर्चा अंक- 3527)" पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    -अनीता लागुरी'अनु'

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  4. जी दी दर्शन और मंथन का सुंदर संगम।
    मन को शीतलता प्रदान करती और एक नवीन दिशा दिखलती सराहनीय अभिव्यक्ति।
    प्रणाम दी।

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  5. आध्यात्म भाव लिए लाजवाब सृजन कुसुम जी । बेहतरीन वैचारिक चिन्तन लिए प्रेरक रचना ।

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