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Friday, 22 November 2019

बिटिया ही कीजे

अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजे ।
प्रभु मुझ में ज्वाला भर दीजे,
बस  ऐसी  शक्ति  प्रभु  दीजे,
अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजे।
आंख उठे जो लिए बेशर्मी
उन आंखों से ज्योति छीन लूं ,
बन अम्बे ,दानव मन का
शोणित नाश करू कंसों का,
अबला, निर्बल, निःसहाय नारी का ,
संबल बनूं दम हो जब तक
चीर हीन का बनूं मैं आंचल ,
आतताईंयों की संहारक ,
काली ,दुर्गा ,शक्ति रूपेण बन,
हनन करू सारे जग के खल जन,
विनती ऐसी प्रभु सुन लीजे
अगले जनम मोहे बिटिया  ही कीजे।।

                कुसुम कोठारी ।

8 comments:

  1. बिल्कुल.... सटीक और सुंदर|

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२४ -११ -२०१९ ) को "जितने भी है लोग परेशान मिल रहे"(चर्चा अंक-३५२९) पर भी होगी
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
    महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २५ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  4. बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति 👌👌

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  5. अगले जनम, मोहे बिटिया ही कीजो,
    पहले मगर, सबको सन्मति दीजो !

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  6. बहुत खूब ...
    सच है नारी को ऐसी चाह रखनी होगी और चंडी बन विनाश करना होगा नरसंहारों का ...
    बहुत गहरी और सार्थक सोच ...

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  7. वाह!!कुसुम जी ,बहुत खूबसूरत भावों से सजी कृति ।

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  8. अबला, निर्बल, निःसहाय नारी का ,
    संबल बनूं दम हो जब तक
    चीर हीन का बनूं मैं आंचल ,
    आतताईंयों की संहारक ,
    बहुत खूब ! लाजवाब और ओजपूर्ण रचना 👌👌

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