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Wednesday, 27 November 2019

एक और महाभारत

एक और महाभारत

गर्दिश ए दौर किसका था
कुछ समझ आया कुछ नहीं आया,
वक्त थमा था उसी जगह
हम ही गुज़रते रहे दरमियान,
गजब खेल था समझ से बाहर
कौन किस को बना रहा था,
कौन किसको बिगाड़ रहा था,
चारा तो बेचारा आम जन था,
जनता हर पल ठगी सी खड़ी थी
महाभारत में जैसे द्युत-सभा बैठी थी,
भीष्म ,धृतराष्ट्र,द्रोण ,कौरव- पांडव
न जाने कौन किस किरदार में था,
हां दाव पर द्रोपदी ही थी पहले की तरह,
जो प्रंजातंत्र के वेश में लाचार सी खड़ी थी,
जुआरी जीत-हार तक नये पासे फैंकते रहे,
आदर्शो का भरी सभा चीर-हरण होता रहा,
केशव नही आये ,हां केशव अब नही आयेंगे ,
अब महाभारत में "श्री गीता" अवतरित नहीं होगी,
बस महाभारत होगा छल प्रपंचों का ।

              कुसुम कोठारी।

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 28 नवम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      आपके द्वारा चुने कर मुखरित मौन में आना,
      ये सदा मेरे लिए हर्ष का अनुभव है।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (29-11-2019 ) को "छत्रप आये पास" (चर्चा अंक 3534) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिये जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    -अनीता लागुरी 'अनु'

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    1. बहुत बहुत आभार,मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए।

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  3. कौन किस को बना रहा था,
    कौन किसको बिगाड़ रहा था,
    चारा तो बेचारा आम जन था,
    जनता हर पल ठगी सी खड़ी थी.. सही कहा सखी, बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति

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    1. जी सखी बहुत बहुत आभार आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।

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  4. वाह! दीदी बेहतरीन सृजन. वैदिक साहित्य के सन्दर्भ रचना में वर्तमान सरोकारों से जुड़कर उभरे हैं. बहुत अच्छी रचना है.
    बधाई एवं शुभकामनाएँ.
    लिखते रहिए.

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    1. सस्नेह आभार भाई रविन्द्र जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से मेरा उत्साह वर्धन हुआ और दिशा निर्देश भी मिला ,रचना के गहन तत्त्वों पर कम शब्दों में सार कह देना विशिष्ट शैली है आपकी ।
      ढेर सारा आभार।

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  5. अब महाभारत में "श्री गीता" अवतरित नहीं होगी,
    बस महाभारत होगा छल प्रपंचों का।
    बहुत सुंदर और सटिक रचना,कुसुम दी।

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    1. प्रिय ज्योति बहन बहुत-बहुत आभार आपका, उर्जा देती प्रतिक्रिया आपकी।

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  6. गर्दिश ए दौर किसका था
    कुछ समझ आया कुछ नहीं आया,
    वक्त थमा था उसी जगह
    हम ही गुज़रते रहे दरमियान,
    गजब खेल था समझ से बाहर
    कौन किस को बना रहा था,
    कौन किसको बिगाड़ रहा था,
    चारा तो बेचारा आम जन था,
    जनता हर पल ठगी सी खड़ी थी... वाह !वाह !निशब्द हूँ
    आदरणीया दीदी जी.
    सादर

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  7. जी आभार लोकेश जी आपका।

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  8. बहुत बहुत आभार बहना आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया से सदा लेखन को उर्जा मिलती है ।

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  9. बेहतरीन भावों से सजी गंभीर भावाभिव्यक्ति कुसुम जी ।

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