अनसुलझी पहेली
पूर्णिमा गयी,बीते दिन दो
चाँद आज भी पुरे शबाब पर था
सागर तट पर चाँदनी का मेला
यूं तो चारों और फैला नीरव
पर सागर में था घोर प्रभंजन
लहरें द्रुत गति से द्विगुणीत वेग से
ऊपर की तरफ झपटती बढ़ती
ज्यो चंन्द्रमा से मिलने
नभ को छू लेगी उछल उछल
और किनारों तक आते आते
बालू पर निराश मन के समान
निढ़ाल हो फिर लौटती सागर में
ये सिलसिला बस चलता रहा
दूर शिला खण्ड पर कोई मानव आकृति
निश्चल मौन मुख झुकाये
कौन है वो पाषण शिला पर ?
क्या है उस का मंतव्य?
कौन ये रहस्यमयी,क्या सोच रही?
गौर से देखो ये कोई और नही
तेरी मेरी सब की क्लान्त परछाई है
जो कर रही सागर की लहरों से होड
उससे ज्यादा अशांत
उससे ज्यादा उद्वेलित
कौन सा ज्वार जो खिचें जा रहा
कितना चाहो समझना समझ न आ रहा ।
अनसुलझा रहस्य…....
कुसुम कोठारी ।
पूर्णिमा गयी,बीते दिन दो
चाँद आज भी पुरे शबाब पर था
सागर तट पर चाँदनी का मेला
यूं तो चारों और फैला नीरव
पर सागर में था घोर प्रभंजन
लहरें द्रुत गति से द्विगुणीत वेग से
ऊपर की तरफ झपटती बढ़ती
ज्यो चंन्द्रमा से मिलने
नभ को छू लेगी उछल उछल
और किनारों तक आते आते
बालू पर निराश मन के समान
निढ़ाल हो फिर लौटती सागर में
ये सिलसिला बस चलता रहा
दूर शिला खण्ड पर कोई मानव आकृति
निश्चल मौन मुख झुकाये
कौन है वो पाषण शिला पर ?
क्या है उस का मंतव्य?
कौन ये रहस्यमयी,क्या सोच रही?
गौर से देखो ये कोई और नही
तेरी मेरी सब की क्लान्त परछाई है
जो कर रही सागर की लहरों से होड
उससे ज्यादा अशांत
उससे ज्यादा उद्वेलित
कौन सा ज्वार जो खिचें जा रहा
कितना चाहो समझना समझ न आ रहा ।
अनसुलझा रहस्य…....
कुसुम कोठारी ।
कितना चाहो समझना समझ न आ रहा ।
ReplyDeleteअनसुलझा रहस्य…....सच ज़िंदगी भी ऐसी है अपने आप में अनबूझ पहेली बेहतरीन रचना सखी 👌👌
वाह बहुत सुन्दर आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से उर्जा मिली सखी ।
Deleteसस्नेह आभार ।
कुसुम दी इसलिए ही तो कहा जाता हैं कि जिंदगी एक पहेली हैं। बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सा आभार ज्योति बहन ।
Deleteहम बस पहेली हल करने की असंभव कोशिश जारी रखें।
सस्नेह ।
गौर से देखो ये कोई और नही
ReplyDeleteतेरी मेरी सब की क्लान्त परछाई है
जो कर रही सागर की लहरों से होड
उससे ज्यादा अशांत
बहुत ही सुंदर ,सागर और मन की दशाएक सी तो हैं ,लाजबाब , सादर नमस्कार आप को
कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला सच बहुत सा आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 22 मई 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी बहुत सा आभार आपका
Deleteवाह। अद्भुत बिम्ब।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका प्रोत्साहन मिला।
Deleteवाह
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका
Deleteबेहतरीन रचना सखी !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी आपकी उपस्थिति सदा आनंद देती है।
Deleteसस्नेह।
वाह ! बेहतरीन प्रिय दी
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार प्रिय बहन।
Deleteसस्नेह
जी कुसुम बहन -- क्लांत प्राणों की अकुलाहट की लहरें समन्दर की लहरों से कहीं अधिक भयावह होती हैं | इनका ज्वार किसी पूर्णिमा का मोहताज नहीं | पूर्णिमा के दो दिन या चार दिन बाद भी इनके ज्वार मंद नहीं पड़ता | सच है मन की दुनिया के उतार चढ़ाव क्यों नहीं संभाल पाता मानव --ये प्रश्न सदियों से अनुत्तरित है | इसका रहस्य प्रकृति के पास है हमारे नहीं | सुंदर बिम्ब विधान से रचा गया अनुपम काव्य चित्र जो आपके लेखन की विशेषता है | सस्नेह
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूब!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
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