कहो तो गुलमोहर
मई जून में भी यूं खिल-खिल
बौराये बसंत हुवे जाते हो ।
कहो तो गुलमोहर कैसे !
गर्मी में यूं मुस्कुराते हो ?
कहो क्या होली पर भटक
कहीं दूर गली जाते हो
चटकिला रंग लिए अब
किससे फाग खेलने आते हो।
छाया घनेरी मन भावन
पथिक को लुभाते हो
धानी चुनरी रेशमी लाल
बूंटों से सज जाते हो ।
रंगत से अपनी सूरज से
तुम होड़ लेते रहते हो
गर्मी से लड़ने को सुर्खरु
तमतमाऐ से रहते हो।
मस्त हो इतराते रहते हो
गुनगुनाते गीत गाते हो
झूम झूम लहरा कर
पाखियों को न्योता देते हो।
पढ़ाते हो पाठ जिंदगी में
कितनी भी धूप हो
एहसासों की रंगत का
कम कभी ना सरूप हो।
कुसुम कोठारी।
मई जून में भी यूं खिल-खिल
बौराये बसंत हुवे जाते हो ।
कहो तो गुलमोहर कैसे !
गर्मी में यूं मुस्कुराते हो ?
कहो क्या होली पर भटक
कहीं दूर गली जाते हो
चटकिला रंग लिए अब
किससे फाग खेलने आते हो।
छाया घनेरी मन भावन
पथिक को लुभाते हो
धानी चुनरी रेशमी लाल
बूंटों से सज जाते हो ।
रंगत से अपनी सूरज से
तुम होड़ लेते रहते हो
गर्मी से लड़ने को सुर्खरु
तमतमाऐ से रहते हो।
मस्त हो इतराते रहते हो
गुनगुनाते गीत गाते हो
झूम झूम लहरा कर
पाखियों को न्योता देते हो।
पढ़ाते हो पाठ जिंदगी में
कितनी भी धूप हो
एहसासों की रंगत का
कम कभी ना सरूप हो।
कुसुम कोठारी।
पढ़ाते हो पाठ जिंदगी में
ReplyDeleteकितनी भी धूप हो
एहसासों की रंगत का
कम कभी ना सरूप हो।.. बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌👌🌹
आपकी त्वरित प्रतिक्रिया से मन को खुशी हुई सखी आपका स्नेह अतुल्य है।
Deleteसदा स्नेह ।
बेहतरीन रचना कुसुम दी
ReplyDeleteसस्नेह आभार बहन आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Delete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-05-2019) को
"मातृ दिवस"(चर्चा अंक- 3333) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
....
अनीता सैनी
जी अनुग्रहित हुई मै बस अभी चर्चा मंच पर बराबर आ नही पाती पर आपका स्नेह मिलता रहा है।
Deleteसाभार।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, हिंदी ब्लॉगिंग अंतर्जाल युग की एक उल्लेखनीय उपलब्धि“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआदरणीय वीणा जी मेरे ब्लॉग पर आपको देख सुखद अनुभूति हुई
Deleteसदा स्नेह बनाये रखें।
मैं ब्लॉग बुलेटिन पर अवश्य उपस्थित होऊंगी ।
पुनः आपका बहुत सा आभार।
गुलमोहर से आपकी गुफ्तगू अच्छी लगी। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सुंदर प्रतिक्रिया आपकी उत्साह वर्धन करती।
Deleteवाह, बहुत बढ़िया
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका प्रोत्साहन के लिए
Deleteमई जून में भी यूं खिल-खिल
ReplyDeleteबौराये बसंत हुवे जाते हो ।
कहो तो गुलमोहर कैसे !
गर्मी में यूं मुस्कुराते हो ?
वाह...., तप्त वसुंधरा पर बारिश की पहली फुहार सा सृजन कुसुम जी ! अत्यंत सुन्दर और मन भावन !!
मीना जी आपकी प्यारी मन मोहक प्रतिक्रिया से मन को सच मुच पहली बारिश सा सुकून मिला। ढेर सा स्नेह आभार आपका।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१३ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी स्नेह आभार आपका।
Deleteअप्रतिम रचना
ReplyDeleteपढ़ाते हो पाठ जिंदगी में
ReplyDeleteकितनी भी धूप हो
एहसासों की रंगत का
कम कभी ना सरूप हो।
वाह!!!
लाजवाब सृजन
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना बुधवार १५ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय मीना जी मैं अभिभूत हूं।
Deleteसस्नेह
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना प्रिय दी
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार बहना।
Deleteसस्नेह ।
मानवीकरण अलंकार से सुशोभिर सुंदर रचना।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका आपकी विशिष्ट प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सर।
Deleteसादर
बहुत सुन्दर कुसुम जी, पर मेरा एक सवाल -
ReplyDeleteगुलमोहर जब याद आया है तुम्हें,
अमलतास, बतलाओ कैसे भूल गईं तुम?
पांच लिंक अमलतास लेकर जब आयेगा मेरी लेखनी प्रयास जरूर करेगी सर ।
Deleteसादर आभार सर आपका हृदय तल से।
वैसे आपके कहने पर अमलतास पर जरूर लिखूंगी।
सादर।
पढ़ाते हो पाठ जिंदगी में
ReplyDeleteकितनी भी धूप हो
एहसासों की रंगत का
कम कभी ना सरूप हो।
गुलमोहर से जिंदगी की सीख देती लाज़बाब सृजन ,सादर नमस्कार
कामिनी जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से मन को सुकून और रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteछाया घनेरी मन भावन
ReplyDeleteपथिक को लुभाते हो
धानी चुनरी रेशमी लाल
बूंटों से सज जाते हो ।
बहुत ही प्यारी रचना प्रिय कुसुम बहन | मानवीकरण अलंकार का बेहतरीन और जीवंत उदाहरण | कितने ही प्रश्नों का उत्तर मांगता ये मासूम उद्बोधन एक सुंदर रचना के रूप में ढल कर बहुत मनभावन हो गया है | सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई | सस्नेह
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१०-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २० 'गुलमोहर' (चर्चा अंक-३६९७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
पढ़ाते हो पाठ जिंदगी में
ReplyDeleteकितनी भी धूप हो
एहसासों की रंगत का
कम कभी ना सरूप हो।
सुंदर सृजन कुसुम जी ,सादर नमन
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