जी नमस्ते, आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-05-2019) को "सुनो बटोही " (चर्चा अंक-3325) पर भी होगी। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। .... अनीता सैनी
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (04-05-2019) को "सुनो बटोही " (चर्चा अंक-3325) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
....
अनीता सैनी
बहुत सा आभार चर्चा मंच पर मेरी रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteसस्नेह।
"चलो चाँद पर कुछ क़समे उठा देखा जाए
ReplyDeleteचमकता रहा माहताबे अल शब-ए आबरू"
वाह !!! बहुत खूब ...., अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति कुसुम जी ।
आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली मीना जी।
Deleteआपका स्नेह सदा मेरे लिए मुल्यवान है।
सस्नेह।
वाहह्हह दी .बहुत शानदार.. लाज़वाब हर अश'आर नायाब है...आपकी लेखनी का हर रुप बस कमाल है।
ReplyDeleteआपकी सक्रिय प्रतिक्रिया और सराहना से मन को अथाह सुख मिला ।
Deleteसस्नेह श्वेता।
वाह
ReplyDeleteसादर आभार आपका प्रोत्साहन के लिए।
Deleteबहुत सुंदर पंक्तियां 👌👌👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है ।
Deleteपहरे बिठाये थे आसमाँ पर आफ़ताब के
ReplyDeleteवो ले गया इश्राक़ आलम हुवा बे-आबरू ।
बहुत खूब प्रिय कुसुम बहन !!!!! भावपूर्ण अशार !!!!
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
९ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी बहुत सुंदर प्रस्तुति ।बहुत ही सार्थक सृजन।
ReplyDeleteपहरे बिठाये थे आसमाँ पर आफ़ताब के
ReplyDeleteवो ले गया इश्राक़ आलम हुवा बे-आबरू ।
वाह!!!!
बहुत ही लाजवाब अश'आर...