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Friday, 11 November 2022

जौहर स्यूं पैला


 जौहर स्यूं पैला (राजस्थानी गीत)


नख शिख तक श्रृंगार रच्यो 

कठा चाली ऐ पद्मिणी

हाथ सजायाँ थाल रजत रो

मदरी चाली मृगनयणी।


आँख्याँ झरतो तेज सूर सो

टीकी करती दप-दप भाल

पाँत सिंदुरी केशा बिच में

शोभ रह्या रतनारी गाल


चंद्रिका सो उजालों मुखड़ों

क्षीर समंद गुलाब घुल्यो

निरख रयो है चाँद बावलो

लागे आज डगर भुल्यो।


पण घिरी उदासी मुखड़े पर

डबके आँख्याँ भरयोड़ी

सजी-धजी गणगौरा स्यूँ

 गूँज रही गढ़ री पोड़ी


नैण नमायाँ रानी बोली

सत्यानाशी रूप भयो

आँख रिपु के बन्यो किरकिरी

आज हाथ से माण गयो


बैरी आज गढ़ द्वार पहुंच्या

छत्री धार केशर बाण

आण बचाने रजपूता री

छतराण्या तजसी स्व प्राण।


जौहर की तो आग जले हैं

निछावर होसी हर नार

रूप सुहागण दुल्हन जैसो

दृग नहीं आँसू री धार।


एक पद्मिणी खातिर देखो

लख मानस प्राण गँमासी

स्व प्राणा रो मोह नहीं पण

एक दाग साथे जासी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

9 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।

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    1. हृदय से आभार आपका ज्योति बहन।
      लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  2. बहुत बढियां सृजन

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    1. हृदय से आभार भारती जी।
      उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना सखी

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    1. हृदय से आभार आपका सखी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  4. बहुत ही सुंदर और भावप्रवण गीत ।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  5. हृदय से आभार आपका कामिनी जी।
    मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
    चर्चा मंच पर रचना को देखना सदा सुखद अनुभव।
    सस्नेह।

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