कृष्ण कहाँ है!
जन्म दिवस तो नंद लाल का
हम हर वर्ष मनाते है।
पर वो निष्ठुर यशोदानंदन
कहाँ धरा पर आते हैं।
भार बढ़ा है अब धरणी का
पाप कर्म इतराते हैं।
वसुधा अब वैध्व्य भोगती
कहाँ सूनी माँग सजाते हैं।
कण-कण विष घुलता जाता
संस्कार बैठ लजाते हैं।
गिरावट की सीमा टूटी
अधर्म की पौध उगाते हैं।
विश्वास बदलता जाए छल में
धोखे की धूनी जलाते हैं।
मान अपमान की बेड़ी टूटी
लाज छोड़ भरमाते हैं।
नैतिकता और सदाचार का
फूटा ढ़ोल बजाते हैं।
शरम हया के गहने को
बीते युग की बात बताते हैं।
चीर द्रोपदी का अब छोटा
दामोदर कहां बढ़ाते हैं।
काम बहुत ही टेढ़ा अब तो
भरे सभी के खाते हैं।
स्वार्थ लोलुपता ऐसी फैली
भूले रिश्ते और नाते हैं।
ढोंग फरेब का जाल बिछा
झुठी भक्ति जतलाते हैं।
मँच चढ़े और हाथ में माइक
शान में बस इठलाते हैं।
तृषित है जग सारा अब तो
दर्द की चरखी काते है।
आ जाओ करूणानिधि
हम हाथ जोड़ बुलाते हैं ।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 31 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीया।
Deleteपांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
वो भी कान्हा हैं जरूरी आएँगे ...
ReplyDeleteधर्म की हानि जब जब होगी ... किसी न किसी रूप में आएँगे, अपने भक्तों से जुदा नहीं रह पाते वो भी ... सुन्दर भावपूर्ण रचना ...
जी बहुत बहुत आभार आपका नासा जी, आपकी सारगर्भित टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका सु-मन जी।
Deleteसस्नेह।
ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-09-2021) को चर्चा मंच "ज्ञान परंपरा का हिस्सा बने संस्कृत" (चर्चा अंक- 4174) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा में शामिल होना सदा सुखद होता है।
Deleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
सुन्दर आह्वान
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अनुपमा जी सस्नेह।
Deleteभगवान के प्रति आस्था और विश्वास भरा निवेदन करती सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी,आपकी सुंदर समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना को गति मिली।
Deleteसस्नेह।
वाह!गजब दी 👌
ReplyDeleteलाजवाब यथार्थ का शब्द चित्र।
सादर
बहुत बहुत सा स्नेह आभार बहना, रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका मनोज जी ।
Deleteसादर।
सभी रचनाएं बहुत सुन्दर सर गर्भित।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दी।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन..
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका विकास जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
सादर।
वाह कुसुम जी, एक एक शब्द दिल में उतरता जा रहा है कि----
ReplyDeleteकण-कण विष घुलता जाता
संस्कार बैठ लजाते हैं।
गिरावट की सीमा टूटी
अधर्म की पौध उगाते हैं।
विश्वास बदलता जाए छल में
धोखे की धूनी जलाते हैं।---अद्भुत "कविता कृष्ण की"
बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
कृष्ण को टेरती ये रचना गोपीनन्दन राधावल्लभ माधव को आज की सामाजिक राजनीतिक दुर्दशा से वाकिफ करवाती है।जितना खींचों चीयर यहां अब दामन ये चिल्लाते हैं कृष्ण कहाँ अब आते हैं जब दुर्योधन इतराते हैं.लीलाधर कितने स्वघोषित पल पल लीला दिखलाते हैं आँख मींचकर नैतिकता -नैतिकता सब चिलाते चिल्लाते हैं.
ReplyDeleteयथार्थ को प्रतिबिंबित ध्वनित मुखरित अनुगूंजित करती रचना प्रज्ञा कुसुम कुठारी की सबको आइना थमाती है।
वाह! आपकी प्रतिक्रिया ने वो भी कह दिया जो मैं कहने से चूक गई।
Deleteसुंदर व्याख्यात्मक भावप्रवण प्रतिक्रिया।
सादर आभार आपका।
ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका आदरणीय।
सुंदर आव्हान ।
ReplyDeleteश्री कृष्ण अवश्य आयेंगे ।
जय श्रीकृष्णा ।
जी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसादर।
तृषित है जग सारा अब तो
ReplyDeleteदर्द की चरखी काते है।
आ जाओ करूणानिधि
हम हाथ जोड़ बुलाते हैं ।।
अब तो आना ही होगा उन्हें,बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति,सादर नमन कुसुम जी ।
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया सदा लेखनी को नई ऊर्जा देती है ।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर उलाहना। अब तो कृष्ण को मान जाना चाहिए।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी,
Deleteसकारात्मक उर्जा देती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सादर।
अति सुन्दर और यथार्थ को दर्शाती रचना पढ़कर 'खानदान' फिल्म का गीत याद आ गया- " बड़ी देर भयी नन्दलाला तेरी राह तके बृजवाला", ग्वाल- बाल इक-इक पूछे..कहाँ हैं मुरलीवाला रे...",।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका विरेंद्र जी ,आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर।