मौसम में मधुमासी
रिमझिम बूँदों की बारातें
मौसम में मधुमासी जागी।
मलय संग पुरवाई लहरी
जलती तपन धरा की भागी।
धानी चुनर पीत फुलवारी
धरा हुई रसवंती क्यारी।
जगा मिलन अनुराग रसा के
नाही धोई दिखती न्यारी।
अंकुर फूट रहे नव कोमल
पादप-पादप कोयल रागी।।
कादम्बिनी पर सौदामिनी
दमक बिखेरे दौड़ रही है।
लगी लगन दोनों में भारी
हार जीत की होड़ रही है।
वसुधा गोदी बाल खेलते
छपक नाद अति मोहक लागी।।
बाग सजा है रंग बिरंगा
जैसे सजधज खड़ी कामिनी।
श्वेत पुष्प रसराज लगे ज्यों
लता छोर से पटी दामिनी।
कली छोड़ शैशव लहकाई
श्यामल मधुप हुआ है बागी।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (27-08-2021) को "अँकुरित कोपलों की हथेली में खिलने लगे हैं सुर्ख़ फूल" (चर्चा अंक- 4169) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी चर्चा पर रचना को स्थान देने के लिए।
Deleteमैं उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteसादर।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी बहुत बहुत आभार आपका,पाँच लिकों पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteये सदा उत्साह का संचार करता है।
मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
वाह अति सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका बहना रानी।
Deleteवाह!बहुत सुंदर सृजन दी।
ReplyDeleteसादर
सस्नेह आभार आपका, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
वाह
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
वाह !!!! क्या बात ......भौंरा भी बागी हो गया ... बेहतरीन
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर सस्नेह।
वाह बहुत सुमधुर भाव
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका अनुपमा जी , उत्साहवर्धन हुआ ।
Deleteसस्नेह।
धानी चुनर पीत फुलवारी
ReplyDeleteधरा हुई रसवंती क्यारी।
जगा मिलन अनुराग रसा के
नाही धोई दिखती न्यारी।
अंकुर फूट रहे नव कोमल
पादप-पादप कोयल रागी।।
वाह!!!
आपके नवगीत के भी क्या कहने...
कमाल का सृजन...शब्द-शब्द आँखों में प्रकृति की सुन्दर छटा बिखेर रहा है....
लाजवाब।
सुधा जी आपकी स्नेह से सिक्त उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मुझे और लेखन दोनों को उर्जा से भर देते हैं।
Deleteस्नेह आभार आपका, इतनी प्यारी टिप्पणी के लिए।
सस्नेह।
प्रकृति की मनोरम छटा बिखेरती उत्कृष्ट रचना, बहुत शुभकामनाएं कुसुम जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी प्रतिक्रिया से लेखन में नव उर्जा का संचार होता है।
Deleteसस्नेह।
आदरणीया मैम, प्रकृति के मनोहर रूप का वर्णन करती भर ही सुंदर रचना। मन में अपने आप ही एक सुंदर से उपवन की छवि उभर आती है। माँ प्रकृति अपने हर रूप में सुंदर हैं, पर वर्षा ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य कुछ और ही होता है। मुझे भी बारिश में अपनी खिड़की से बाहर देखना बहुत अच्छा लगता है। मैं एक किताब अपने हाथ में ले लेती हूँ और खिड़की पर बैठ जाती हूँ। थोड़ा नज़ारा देखती हूँ, थोड़ी किताब पढ़ती हूँ। हृदय से आभार इस सुंदर मनमोहक रचना के लिए व आपको प्रणाम।
ReplyDeleteप्रिय अनंता आप मुझे मैम न कहा कर दी पुकारो तो अच्छा लगेगा ।
Deleteवैसे आपकी भाव भरी प्रतिक्रया से मुझे बहुत उर्जा मिली,रचना पर विस्तृत प्रकाश डालती मोहक प्रतिक्रिया।
स्नेह आभार आपका।
सस्नेह।
जी बहुत बहुत आभार आपका सु-मन जी ।
ReplyDeleteसस्नेह।