"पलकों में सपने सँजोये,
आस मन पलती रही।'
चांदनी के वर्तुलों में
सोम सुधा झरती रही।
सुख सपन सजने लगे,
युगल दृग की कोर पर।
इंद्रनील कान्ति शोभित
मन व्योम के छोर पर ।
पिघल-पिघल निलिमा से,
मंदाकिनी बहती रही ।
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
गुनगुनाती रही दिशाएं,
लिए राग मौसम खड़ा।
बाहों में आकाश भरने
पाखियों सा मन उड़ा।
देख वल्लरियों पर यौवन
कुमुद कली खिलती रही
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
द्रुम बजाते रागिनी सी,
मिल समीर की थाप से।
झिलमिलता नीर सरि का,
दीप मणी की चाप से ।
उतर आई अप्सराएं,
शृंगार धरा करती रही ।
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आस मन पलती रही।'
चांदनी के वर्तुलों में
सोम सुधा झरती रही।
सुख सपन सजने लगे,
युगल दृग की कोर पर।
इंद्रनील कान्ति शोभित
मन व्योम के छोर पर ।
पिघल-पिघल निलिमा से,
मंदाकिनी बहती रही ।
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
गुनगुनाती रही दिशाएं,
लिए राग मौसम खड़ा।
बाहों में आकाश भरने
पाखियों सा मन उड़ा।
देख वल्लरियों पर यौवन
कुमुद कली खिलती रही
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
द्रुम बजाते रागिनी सी,
मिल समीर की थाप से।
झिलमिलता नीर सरि का,
दीप मणी की चाप से ।
उतर आई अप्सराएं,
शृंगार धरा करती रही ।
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
पलकों में सपने संजोए
ReplyDeleteआस मन पलती रही।
सदैव की भांति भावपूर्ण , हृदय को आह्लादित करने वाली और सकरात्मक से भरी हुई रचना, प्रणाम दी
बहुत बहुत आभार आपका भाई आपकी त्वरित सरस प्रतिक्रिया से सदा उत्साह वर्धन होता है।
Deleteवाह!!कुसुम जी ,बहुत सुंदर 👍
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी ।
Deleteसस्नेह
।
बहुत सुंदर 👌👌👌
ReplyDeleteसस्नेह सखी आपने सुंदर दो पंक्तियां शेयर की जिस पर रचना लिखने में बहुत आनंद आया।
Deleteढेर सा स्नेह आभार।
अरे वाह वाह दी बहुत सुंदर रचना दी भाषा का लालित्य शब्द संयोजन... और सकारात्मक मृदुल भाव अति सराहनीय.. ये कविता आप की सर्वश्रेष्ठ कविताओं में एक है...बहुत सुंदर लिखा आपने छंदात्मक कविता....बधाई दी।
ReplyDeleteश्वेता आपकी मोहक उर्जावान प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई,
Deleteसचमुच सुकून मिला। इतनी सुंदर टिप्पणी जो मेरे लिए सहेज कर रखने योग्य है।
ढेर ढेर ढेर सा स्नेह।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 04 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी।
Deleteपिछले कई दिनों से समायाभाव के चलते ब्लाग पर काफी अनियमितता रही है मेरी ,आपका स्नेह सदा मिलता रहा और सदा आगे भी मिलता रहेगा ।
सादर सस्नेह।
गुनगुनाती रही दिशाएं,
ReplyDeleteलिए राग मौसम खड़ा।
बाहों में आकाश भरने
पाखियों सा मन उड़ा।
देख वल्लरियों पर यौवन
कुमुद कली खिलती रही
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
बेहतरीन रचना सखी 👌🌹
बहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
Deleteसस्नेह।
आस मन पलती रही ...
ReplyDeleteये आस हमेशा पोषीत होनी जरूरी है मन में ... जीवन सफार आसान बना देती है ये ...
एक दिशा एक राह बना देती है ...
बहुत सा आभार आदरणीय नासवा जी आपकी सुंदर और विशिष्ट प्रतिक्रिया सदा उर्जा का संचार करती है।
Deleteबहुत उम्दा प्रतिपंक्तिया आपकी ।
सादर।
पलकों में सपने सँजोये,
ReplyDeleteआस मन पलती रही।'
चांदनी के वर्तुलों में
सोम सुधा झरती रही।
अत्यंत सुन्दर और मनोरम सृजन कुसुम जी ।
मीना जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से सदा मेरी रचना और अधिक सार्थक हो जाती है सदा स्नेह बना रहे ।
Deleteबहुत बहुत आभार।
सस्नेह।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबाहों में आकाश भरने
ReplyDeleteपाखियों सा मन उड़ा।
देख वल्लरियों पर यौवन
कुमुद कली खिलती रही.
वाह दी.. बहुत सुन्दर गीत.
"पलकों में सपने सँजोये,
ReplyDeleteआस मन पलती रही
चांदनी के वर्तुलों में
सोम सुधा झरती रही
बहुत ही सुंदर , सुंदर भावों से सजी मनमोहक रचना हमेशा की तरह ,सादर नमन कुसुम जी
कुसुम जी
ReplyDeleteजितनी बार आती हूँ यहां आपकी भाषा शैली से और प्रभावित हुए जाती हूँ। .. बहुत ही अच्छी पकड़ हे आपकी भाषा शैली को प्रयोग करने में
चांदनी के वर्तुलों में
सोम सुधा झरती रही।
बधाई स्वीकारे
ReplyDeleteगुनगुनाती रही दिशाएं,
लिए राग मौसम खड़ा।
बाहों में आकाश भरने
पाखियों सा मन उड़ा।
देख वल्लरियों पर यौवन
कुमुद कली खिलती रही
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
दिल को छुति बहुत ही सुंदर रचना, कुसुम दी।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-12-2019) को "आस मन पलती रही "(चर्चा अंक-3551) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
गुनगुनाती रही दिशाएं,
ReplyDeleteलिए राग मौसम खड़ा।
बाहों में आकाश भरने
पाखियों सा मन उड़ा।
देख वल्लरियों पर यौवन
कुमुद कली खिलती रही
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।... बेहतरीन सृजन आदरणीया दीदी जी
सादर
सुदृढ़ कलापक्ष व भावपक्ष ....अनुपम रचना... सस्नेह शुभकामनाएँ सखी।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
उम्मीदे हरी रहती हैं।
ReplyDeleteलाजवाब रचना।
क्या शब्द शिल्प है ! क्या संयोजन और ऊपर से लयबद्धता मानो सोने पर सुहागा !!!
ReplyDeleteयह रचना पहले भी पढ़ी है और मुखड़े की पंक्तियाँ तो भूलने लायक हैं ही नहीं।
पलकों में सपने सँजोये,
आस मन पलती रही।'
चांदनी के वर्तुलों में
सोम सुधा झरती रही।
बहुत सारा स्नेह।
पलकों में सपने सँजोये,
ReplyDeleteआस मन पलती रही।'
चांदनी के वर्तुलों में
सोम सुधा झरती रही।
बहुत ही प्यारी रचना प्रिय कुसुम बहन। शब्द - शब्द झरते भाव और लयबद्धता में बंधी रचना बहुत मनमोहक है। मीना बहन ने सच कहा मुखड़ातो कमाल है । आपकों सरस रचनाओ का संसार विहंगम है 👌👌👌 सस्नेह शुभकामनायें ।
द्रुम बजाते रागिनी सी,
ReplyDeleteमिल समीर की थाप से।
झिलमिलता नीर सरि का,
दीप मणी की चाप से ।
उतर आई अप्सराएं,
शृंगार धरा करती रही ।
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
बहुत ही सुन्दर, अद्भुत ....
सचमुच अविस्मरणीय लाजवाब सृजन
वाह!!!!
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (22-06-2020) को 'कैनवास में आज कुसुम कोठारी जी की रचनाएँ' (चर्चा अंक-3740) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हमारी विशेष प्रस्तुति 'कैनवास' में आपकी यह प्रस्तुति सम्मिलित की गई है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव
वाह! महादेवीजी की याद आ गयी। सराहना से परे गीत निर्झर! विलक्षण रूप-सौंदर्य!
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