एकलव्य की मनो व्यथा >
तुम मेर द्रोणाचार्य थे
मैं तुम्हारा एकलव्य ,
मैं तो मौन गुप्त साधना में था ,
तुम्हें कुछ पता भी न था
फिर इतनी बङी दक्षिणा
क्यों मांग बैठे ,
सिर्फ अर्जुन का प्यार और
अपने वचन की चिंता थी ?
या अभिमान था तुम्हारा,
सोचा भी नही कि सर्वस्व
दे के जी भी पाऊंगा ?
इससे अच्छा प्राण
मांगे होते सहर्ष दे देता
और जीवित भी रहता
फिर मांगो गुरुदक्षिणा
मैं दूंगा पर ,सोच लेना
अपनी मर्यादा फिर न
भुलाना वर्ना धरा डोल जायेगी ,
मैं फिर भेट करूंगा अंगूठाअपना,
और कह दूंगा सारे जग को
तुम मेरे आचार्य नही
सिर्फ द्रोण हो सिर्फ एक दर्प,
पर मैं आज भी हूं
तुम्हारा एकलव्य ।
कुसुम कोठारी ।
तुम मेर द्रोणाचार्य थे
मैं तुम्हारा एकलव्य ,
मैं तो मौन गुप्त साधना में था ,
तुम्हें कुछ पता भी न था
फिर इतनी बङी दक्षिणा
क्यों मांग बैठे ,
सिर्फ अर्जुन का प्यार और
अपने वचन की चिंता थी ?
या अभिमान था तुम्हारा,
सोचा भी नही कि सर्वस्व
दे के जी भी पाऊंगा ?
इससे अच्छा प्राण
मांगे होते सहर्ष दे देता
और जीवित भी रहता
फिर मांगो गुरुदक्षिणा
मैं दूंगा पर ,सोच लेना
अपनी मर्यादा फिर न
भुलाना वर्ना धरा डोल जायेगी ,
मैं फिर भेट करूंगा अंगूठाअपना,
और कह दूंगा सारे जग को
तुम मेरे आचार्य नही
सिर्फ द्रोण हो सिर्फ एक दर्प,
पर मैं आज भी हूं
तुम्हारा एकलव्य ।
कुसुम कोठारी ।
वाह अद्भुत सुंदर रचना आदरणीया दीदी जी
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह आभार आंचल आपको।
Deleteअहं से बढ़कर आत्मसम्मान का मान
ReplyDeleteद्रोणाचार्य सम गुरु नहीं न एकलव्य सम आन
गुरु शिष्य परंपरा का वह अध्याय भूलना आसान नहीं।
हमेशा की भाँति सारगर्भित रचना दी..👌
सस्नेह आभार श्वेता ¡
Deleteकौन सा मान था नही कह सकती काश गीता का उपदेश कृष्ण पहले सुना देते द्रोणाचार्य और एकलव्य दोनो को तो दोनो अपना कर्तव्य निश्चित कर लेते ।
एकलव्य की मनोव्यथा को बहुत ही सुंदर ढंग से व्यक्त किया हैं आपने, कुसुम दी।
ReplyDeleteढेर सा आभार ज्योति बहन आपकी सार्थक प्रतिक्रिया से रचना को उर्जा मिली।
Deleteसस्नेह ।
बहुत सुन्दर सृजन आदरणीया
ReplyDeleteसादर
सस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।
Deleteg+ बंद हो रहा है प्राय सभी ब्लॉग परिवार फेसबुक पर दिखने लगा आप भी अपना फेसबुक अकाउंट नही हो तो बना लेवें।
बहुत खूब.....तीक्ष्ण व्यंग
ReplyDeleteसुंदर रचना आदरणीया
सादर आभार रविंद्र जी सिर्फ व्यंग नही यह व्यथा है।
Deleteबहुत खूब.....तीक्ष्ण व्यंग
ReplyDeleteसुंदर रचना आदरणीया
सादर आभार सखी ये मेरे लिये सम्माननीय हैं।
ReplyDeleteढेर सा स्नेह आभार ।
बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌
ReplyDeleteबहुत सा आभार सखी ।
Deleteसस्नेह ।