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Monday 30 October 2023

कार्तिक मास का स्वागत


 कार्तिक मास का स्वागत


आया कार्तिक मास है, ऋतु ने बदला वेश।

त्योंहारों की आन ये, पुल्कित सारा देश।।


हवा चले मनभावनी, मुदित हुआ मन आज।

कार्तिक महीना आ गया, सुखद लगे सब काज।।


दीपमालिका आ रही, सजे हाट बाजार।

कार्तिक तेरी शान में, दीप जले दिशि चार।।


झिलमिल झालर सज रहे, हर्षित है नर नार।

कार्तिक लेकर आ गया, खुशियों के त्यौहार।।


गर्मी भागी जोर से, पहन ठंड के चीर।

बादल भी अब स्वच्छ हैं, नहीं बरसता नीर।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday 18 October 2023

नेता ऐसे ऐसे


 नेता ऐसे ऐसे 


मौका आया रंग दिखा कर

बिना बात ही अंगद बनिए

टाँग जमा दें अपनी ऐसे

बिदकी घोड़ी बन कर अड़िए।


चोरी डाका भी डालें तो

अपना चोला रखें बचाकर

साम दाम की अधम कटारी

बात -बात में चले नचाकर

अपना कपटी मन कब हारा

छल बल से सौ-सौ कपट किए।।


अपनी सोचें जग को गोली

तेली के घर जाए निष्ठा

गाँठ टका हो मोटा भइया

माला आती लिए प्रतिष्ठा

मन दिगम्बरी खोट छिपे तो

जाली को ही वस्त्र समझिए।।


ऐसे गुणी प्रतापी बाँधव

अगर देश की शान सँवारे

ढोल पीटते मानवता का

राह भ्रमित से करते नारे

भरपाई करने को नित ही

सौ आश्वासन उपहार दिए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday 12 October 2023

श्याम का प्रस्थान


 श्याम का प्रस्थान


मन पर मेघ घिरे कुछ ऐसे

चुप है पायल की छनछन

गोकुल छोड़ चले गिरधारी 

आज विमोहित सा तनमन।।


पशुधन चुप-चुप राह निहारे

माँ का खाली उर तरसे

लता विलग सी राधा रानी

नयन गोपियों के बरसे

खेद खड़ा प्रस्फुटित राग का

बाँसुरिया से कुछ अनबन।।


रवि का जैसे तेज मंद हो

ठंडी निश्वासें छोड़े

निज प्रकृति भूलकर मधुकर

कलियों से ही मुख मोड़े

सूने पथ है सूनी गलियाँ

नही हवाओं में सनसन।।


पर्वत जैसी पीड़ा पसरी

बहे वेदना का सोता

सुगबग सुगबुग करता मानों 

यमुना का पानी रोता

सभी दिशाए़ मौन खड़ी ज्यों 

लूट चुका निर्धन का धन।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday 7 October 2023

जीवन जैसे युद्ध


 जीवन जैसे युद्ध 


जीवन जैसे युद्ध बना है

सुख बैठा पर्वत चोटी।

क्या धोए अब किसे निचोड़े

तन बस एक लँगोटी।।


कल्पक तेरी कविता से कब

दीन जनों का पेट भरा।

आँखे उनकी पीत वरण सी

स्वप्न अभी तक नहीं मरा।

रोटी ने फिर चाँद दिखाया

चाँद कभी दिखता रोटी।।


दग्ध हृदय में श्वांस धोकनी

खदबद खदबद करती है

बुझती लौ सा दीपक जलता

बाती तेल तरसती है

दृश्य देख अनदेखे करके

मानवता होती छोटी।।


झूठा करें दिखावा कुछ तो

हितचिंतक होते कितने

आश्वासन की डोरी थामे 

दिवस बीतते हैं इतने

भाषण करने वालों की

बातें बस मोटी मोटी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'