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Sunday 30 January 2022

उगती भोर


 उगती भोर


नन्ही चिड़िया नीड़ छोड़कर

दृग टिमकाती है

चीं चप्पर कर छत पर बैठी

राग सुनाती है।


मंजूषा से निकला माली

सोने की पगड़ी

दप-दप शोभा बिखरी न्यारी

रतनारी तगड़ी

हीर मुद्रिका झमके देखो

झम लहराती है।


होलें पग से किरणें उतरी

पर्वत की चोटी

नील तवे पर सिकने आई

सोने की रोटी

बाल मरीची नाहन करता

भोर नहाती है।


शीतल पानी के हिण्डौले

चढ़ के झूल रहा

कलकल लोरी सुनते-सुनते

तपना भूल रहा

चट्टानों के गीत अधूरे 

नदिया गाती है।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday 26 January 2022

बगुले


 बगुले 


कितना धोया बाहर से पर

गूढ़ कलुषिता बैठी भाई

सारी जगती जिसमें रमती

तृष्णा मोह राग की जाई।


कूप कूप में भाँग पड़ी है

 मानव का पानी उतर गया

बूँद-बूँद है गरल भरी सी

अंतस चूकी सब भाव दया

देखो चाल बचाना भइया

घाट-घाट पर फैली काई।।


दान धर्म की बातें थोथी

दाँत दिखाने वाले दूजे

छोड़ छाड़ सब गोरखधंधा

देव मानकर उन को पूजे

शुद्धिकरण कर तन का गंगा

मैल मिटा मन का कब पाई।।


धौला पहने बगुले बैठे

हृदय खोह में खोट भरा है

बड़े-बड़े करते सब दावे

लेकिन झूट का मैल धरा है

कितनी बात छुपाना चाहो 

बूझ सभी लेती है दाई।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Sunday 23 January 2022

शूरां री धरती


 शूरां री धरती (राजस्थान)


कण-कण में जनम्या बाँकुड़ा

नाहर सिंघ सुबीर 

देश दिसावर गगन गूँजतो

रुतबो राख्यो धीर।


शूर जनमिया इसा सांतरा

सूरज जितरी आग

कालजड़ों बेरयाँ रो काढ्यो

माटी जाग्या भाग

जोद्धा लडिया बिणा शीश के

अणुपम कितरा वीर।।


कँवली कुमदन सी लजकाण्याँ

माटी रो सणमाण

राण्याँ तपते तेज सी

पळ में तजगी प्राण

जौहर ज्वाला होली खेली

सदा सुरंगों चीर।


बालुंडारा नान्हा पगल्या

पालनिये दिख जावे

दाँता तले आंगल्याँ सा

करतब हिय लुभावे

प्राण लियाँ हाथाँ में घूमे

हरे देश री पीर।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


बांकुड़ा=बांकुरे

जन्मया=जन्मे  या जन्म लिया

देश-दिसावर=देश विदेश

रुतबों=महत्ता, जनमिया=जन्मे

सांतरा= जबरदस्त,जितरी=जितनी

कालजड़ो=कलेजा

बेरयाँ=दुश्मनों का

काढ्यो=निकाला

कितना =कितने

कँवली कुमदन सी लजकाण्याँ=

कोमल कमलिनी सी नाज़ुक (लचक वाली) सणमाण=सम्मान

सदा सुरंगों चीर= सदा सुहागन, जिनका वस्त्र सदा रंगीन हो।

बालुंडारा=बालको के, पगल्या=पैर,आंगल्याँ अगुलियाँ

Friday 21 January 2022

तपस्विनी माण्डवी


 तपस्विनी माण्डवी


राज भवन में एक योगिनी

आँखें नम होगी पढ़कर

क्या अपराध किया बाला ने

रखा गृह बनवास गढ़कर।


बहन स्वयंवर से आनंदित

कलिका सी सब महक रही

खंड़ हुआ शिव धनुष अखंडित 

खुशियाँ जैसे लहक रही

लगन अग्रजा का रघु कुल सुन

सारी बहने चहक रही

तभी तात की एक घोषणा

चार विदाई डोली चढ़कर।।


हुई स्तब्ध तीनों बालाएँ

लेकिन आज्ञा स्वीकारी

परिणय वेदी शुभ मंत्रों सँग

शिक्षा सब अंगीकारी

अवध महल में प्यार लुटाती

रघु कुल हुआ वशीकारी

किया सुशोभित राज धाम को

माँ गृह से शिक्षा पढ़कर।।


और नियति ने पासा पलटा

सब कुछ जैसे बदल गया

भाई के प्रति मोह साध कर

भ्रात भरत वनवास चया

त्यागा सब सुख दूर कंत से

महलों जोगन रूप लिया

तपस्विनी सी व्यथित व्यंजना

कौन माण्डवी से बढ़कर।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday 19 January 2022

नवजात अर्चियाँ (भोर)


 नवजात अर्चियाँ(भोर)


प्राची की प्राचीरें

केसर दूध नहाई

लील वर्तुल झाँकती

नव नवनीत मलाई।


श्यामला मन मोहिनी

पाट अपना छोड़ती

द्यु मणि ने नैन खोले

पीठ अपनी मोड़ती

उजली नवजात सुता 

भोर निशा की जाई।।


कुनमुनी सी भोर ने 

तारक शैया छोड़ी

श्वेत कंठ पर शोभित

महारजत की तोड़ी

चंचल सी किरणों की 

ओढ़ ओढ़नी आई।


शाख तरु झिलमिल करे

झटिका के सँग डोले

जग में जीवन भर दो

विहग विहँसते बोले

मृगनयनी मन भावन

किससे आभा पाई।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Monday 17 January 2022

गर्दिश-ए-दौराँ


 एक और महाभारत


गर्दिश-ए- दौराँ किसका है

कुछ समझ आया कुछ नहीं आया

वक्त थमा है उसी जगह

हम ही गुज़र रहे दरमियान

गज़ब खेल है समझ से बाहर

कौन किस को बना रहा है

कौन किसको बिगाड़ रहा है

चारा तो बेचारा आम जन है

जनता हर पल ठगी सी खड़ी है

महाभारत में जैसे द्युत-सभा बैठी  है

भीष्म ,धृतराष्ट्र, द्रोण ,कौरव- पांडव 

न जाने कौन किस किरदार में है

हाँ दाव पर द्रोपदी ही थी पहले की तरह

जो प्रंजातंत्र के वेश में लाचार सी खड़ी है,

जुआरी जीत-हार तक नये पासे फैंक रहे

आदर्शो का भरी सभा चीर-हरण हो रहा

केशव नही आये, हां केशव अब नही आयेंगे 

अब महाभारत में "श्री गीता" अवतरित नहीं होगी

बस महाभारत होगा छल प्रपंचों का ।

              कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Friday 14 January 2022

पुस्तकों का अवसाद


 पुस्तकों का अवसाद


पुस्तकें अवसाद में अब

बात कल की सोचती सी

झाड़ मिट्टी धूल अंदर

हम रहें मन रोसती सी।।


माध्यमों की बाढ़ आई

प्रश्न है अस्तित्व ही जब

भीड़ का हिस्सा कहाएं

मान बाकी है कहा अब

शारदा की पुत्रियाँ लो

भाग्य अपना कोसती सी।।


ज्ञान का था सिंधु हम में

शीश पर चढती सदा ही

कौन अब जो पूछता है

हाथ सहलाते कदा ही

काठ की बन पुतलियों सम

खूटियों को खोचती सी।।


रद्दियों सम या बिकेंगी 

या बने कागज पुराने

मौन सिसकी कंठ डूबे

भूत हैं अब दिन सुहाने

ढेर का हिस्सा बनी वो 

देह अपनी नोचती सी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday 12 January 2022

युवा दिवस पर दोहे


 युवा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं । 


उठो युवाओं नींद से, बढ़ो चलो हो दक्ष।

जब तक पूरा कार्य हो, लगे रहो प्रत्यक्ष।।


जीवन में संयम रखो, रखो ध्यान पर ध्यान।

दृष्टि रखो बस चित्त पर, तभी बढ़ेगा ज्ञान।।


अनुभव जग में श्रेष्ठ है, यही शिक्षक महान।

अनुभव से सब सीख लो, यहीं दिलाता मान।।


उद्यम धैर्य पवित्रता, तीन गुणों को धार।

जग में हो सम्मान भी, यही आचरण सार।।


निज पर हो विश्वास तो, पूरण होते काम।

निज पर निज अवलंब ही, कार्य सरे अविराम।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday 11 January 2022

अभिमन्यु वध और सुभद्रा की पीड़ा


 अभिमन्यु वध और सुभद्रा की पीड़ा।


धधक रहा है दावानल सा

दृग सावन लगे बरसने

कैसे मन की दाह बुझेगी

नैना नम लगे तरसने।


माँ का अंतर चाक हुआ है

नस नस जैसे फटी पड़ी

अहो विधाता कब रच डाली

ऐसी ये दुर्दांत घड़ी 

आज सुभद्रा की आँखों से 

नींद चुराई है किसने ।।


वध करूँ हर एक पामर का

काली जैसा रूप धरूँ

या शिव के तांडव से फिर

सारी भू का नाश करूँ

उस अधमी का नाम बता दो

मुझ सुत हनन किया जिसने।।


सकल विश्व का पालनहारा

विवश कहाँ था दूर खड़ा

उतरा सी कोमल कलिका पर

विपदा का क्यों वज्र पड़ा

प्रखर मार्तण्ड निखर रहा था

लगी मौत फंदा कसने ।।


हाँ मेरी ही गलती कारण

ग्रास मृत्यु का लाल बना

भेद चक्रव्यूह का कैसे 

अर्द्ध ज्ञान ही काल बना

क्यों तंद्रा ने चाल चली थी

छा मति पर लूटा उसने।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

Sunday 9 January 2022

हिन्दी दिवस मनाने की सार्थकता कितनी


 हिन्दी दिवस मनाने की सार्थकता कितनी?


हम दीपक प्रज्वलित करते हैं, गोष्ठियों का आयोजन करते हैं, जगह-जगह कवि सम्मेलन होते हैं, हिन्दी दिवस की बधाईयाँ देते हैं, लेते हैं ।

हम एक दिन पुरे मातृभाषा के आँचल तले मृग मरीचिका से स्वयं को भ्रमित कर आत्मवंचना से बचने में लगे रहते हैं।


हिन्दी पखवारा और हिन्दी सप्ताह मनाने भर से हिन्दी का उद्धार हो जाना एक खुशफहमी के सिवा और क्या है, हिन्दी के  प्रति प्रतिबद्धता हर समय कम से कम हर हिन्दी साहित्यकार और रचनाकारों को रखनी होगी।

अच्छे लिखने वालों के साथ अच्छे समालोचकों की बहुत आवश्यकता है आज हिन्दी लेखन में।

सबसे मुख्य बात  है कि अब आज के समय में हिन्दी विषय को बस उत्तीर्ण होने जितनी ही अहमियत देते हैं तीनों वर्ग 

1 अध्यापक   2 अभिभावक  3 स्वयं विद्यार्थी।

इसलिये विषय की नींव पर कोई ध्यान नही देता बस काम निपटाता है।


जहाँ तक व्यावहारिकता की बात है, वहाँ हम बस अपने तक सीमित रह जाते हैं, हर-दिन की आपा-धपी से लड़ने के लिए हम बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़ाना चाहते हैं, और ये आज की ज़रूरत ही बन गई है,

विश्व स्तर पर आगे बढ़ने की ललक , प्रतियोगिता के युग में लड़ कर आगे बढ़ने के ध्येय में मातृभाषा का मोह किसी विरले को लुभाता है, बाकी सब बस व्यावहारिक भविष्य को सँवारने का उद्देश्य लिए आगे बढ़ते हैं,उन्हें समय नहीं होता ये देखने का कि उनकी राष्ट्र भाषा उपेक्षिता सी कहाँ खड़ी है। भाषा के पुनरुत्थान के लिए साहित्यकारों और हिन्दी रचनाकारों को ही प्रयास करने होंगे, हम एक दिन हिन्दी दिवस मनाकर हिन्दी के प्रति कौनसी भक्ति दिखाते हैं मुझे नहीं मालूम हम व्यवहार में कितनी हिन्दी उतारते हैं चिंतन कर देखने का विषय है ।

आज  अहिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी की स्थिति कितनी बुरी है, बच्चों को सामान्य से शब्दों का मतलब अंग्रेज़ी में बतलाना पड़ता है, यहाँ तक होता है कि आप को अपने कम अंग्रेजी ज्ञान के लिए लज्जा महसूस होती होगी पर उन्हें अपने न बराबर हिन्दी ज्ञान के लिए कोई ग्लानि नहीं होती ।

हम दायित्व बोध के साथ हिन्दी को नया आसमान देने के लिये सदा प्रतिबद्धता बनाएं ।

दुसरी भाषाओं को अपनाओं सम्मान दो पर अपनी भाषा को शिर्ष स्थान पर रखना हमारा प्रथम कर्तव्य हो ।

कैसे अपने ही घर परित्यक्ता है हिन्दी, क्यों दोयम दर्जा है हिन्दी को, कौन उत्तरदायी है इस के लिए, इस सोच को पीछे छोड़कर आगे के लिए इतना सोचें इतना करें कि हिन्दी अपना शिखर स्थान पा सके ।

हिन्दी हमारा अभिमान है ।


हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।🌷


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

हिन्दी को समर्पित दोहे


 

हिन्दी को समर्पित दोहे।



सभी दिवस हिंदी रहे,भाषा की सिरमौर।

सारा हिन्दुस्तान ही, भाल रखें ज्यों खौर।।


हिंदी मेरा मान है, हिंदी ही शृंगार ।

भाषा के तन पर सजा, सुंदर मुक्ता हार।।


हिंदी सदा लगे मुझे,  सहोदरा सी मीत।

हिंदी ने भर-भर दिया, जीवन में संगीत।‌


बिन हिंदी मैं मूक हूँ, टूटी जैसे बीन।

लाख जतन कर लो मगर, जल बिन तड़पे मीन।।


हिंदी दिवस मना रहे, चहुँ दिशि गूंजे नाद।

हिंदी पर आश्रित रहे, ऐसे कम अपवाद।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।

Friday 7 January 2022

चंद्रमणि छंद में कमल के पर्यायवाची


 कमल के पर्यायवाची शब्दों पर चंद्रमणि छंद।  13/13


सरसिज


सरसिज सोहे सर सकल, सरसाए सुंदर सरस,

मोहक मन को मोहते, सूना पुष्कर है अरस।।


पंकज


पंकज पद पूजूँ सदा, पावन पुलकित प्राण है। 

पीड़ा हरजन की हरे, जन-जन के संत्राण है।। 



नीरज

नीरज आसन नीरजा, नीरज नैना नेह है।

वरदात्री वर दे वहाँ, माणिक मोती मेह है।


शतदल


शतदल शय्या पर शयन, शारद माँ शुक्लाम्बरा ।।

सुमिरन करिये रख विनय,रहता  विद्या घट भरा।।


अंबुज


अंबुज खिलते अंब में, चढ़ते माँ कमला चरण।

उनका भरता कोष है, पा जाता है जो शरण।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday 4 January 2022

लेखनी नि:सृत मुकुल सवेरे


 लेखनी नि:सृत मुकुल सवेरे


श्रृंग श्रेणी चढ़ दिवाकर

दृश्य कोरे है अछेरे

पाखियों की पाँत उड़ती

छोड़कर के नीड़ डेरे।।


कोकिला कूजित मधुर स्वर

मधुकरी मकरंद मोले 

प्रीत पुलकित है पपीहा

शंखपुष्पी शीश डोले

शीत के शीतल करों में

सूर्य के स्वर्णिम उजेरे।।


मोद मधुरिम हर दिशा में

भूषिता भू भगवती है

श्यामला शतरूप धरती

पद्म पर पद्मावती है

आज लिख दे लेखनी फिर

नव मुकुल से नव सवेरे।।


मन खुशी में झूम झूमें

और मसि से नेह झाँके

कागज़ों पर भाव पसरे

चारु चंचल चित्र चाँके

पंक्तियों से छंद झरते

मुस्कुराते गीत मेरे।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'