Followers

Wednesday 28 February 2018

मास सतरंगी

चंग मृदंग ढ़ोल ढमकत चंहू और
फाल्गुन आयो मास सतरंगी
श्वास श्वास चंदन विलसत
नयनों मे केसर घुलत सुरंगी
ऋतु गुलाब आई, मन भाई
धानी चुनरी ओढ सखी चल
होरी खेलन की मन आई
अंबर गुलाल  छायो चहूं और
तन मन भीगत  जाए
आली मिल फाग रस गाऐं
होली मनाऐं ।
          कुसुम कोठारी ।

ना खेरूं होली

ना खेरूं होली तोरे संग
सावंरीया
बिन खेले
तोरे रंग रची मै
कुछू नाही
मुझ मे अब मेरो
किस विधि
च्ढ्यो रंग छुडाऊ
तूं कैसो रंगरेज
ओ कान्हा
कौन देश को
रंग मंगायो
बिन डारे मै
हुई कसुम्बी
तन मन सारो ही
रंग ड़ारयो
ना खेरूं होरी तोरे संग
सांवरिया।

         कुसुम कोठारी ।

Wednesday 21 February 2018

प्रश्न

बच्चे  ने प्रश्न किया
ममता क्या होती है ?
मां ने कहा
तूं हंसता मै तूझ मे जीती
ममता यही होती है।

बच्चे ने प्रश्न किया
मां तूं कैसे जीती है ?
मां ने कहा
तूं मेरा प्रति पल जीता
और मै तूझ मे जीती।

बच्चे ने प्रश्न किया
मां तूं क्यो रोती है ?
मां ने कहा
कभी तूझे जब ठेस लगे
तेरे दर्द से मै रोती।

अब मां  ने प्रश्न किया
तू कौन है?
तूझ से अलग कहां हूं मै
तूं है तो मै हूं
तेरा ही अस्तित्व हूं मै
तूं नही तो क्या हूं मैं ?

      कुसुम कोठरी।

Thursday 15 February 2018


सोने दो चैन से मुझे न ख्वाबों मे खलल डालो
न जगाओ मुझे यूं न वादों मे  खलल डालो

शाख से टूट पत्ते दूर चले उड के अंजान दिशा
ऐ हवाओं ना रुक के यूं मौजों मे खलल डालो

रात भर रोई नरगिस सिसक कर बेनूरी पर अपने
निकल के ऐ आफताभ ना अश्को मे खलल डालो

डूबती कश्तियां कैसे साहिल पे आ ठहरी धीरे से
भूल भी जाओ ये सब ना तूफानों मे खलल डालो

रुह से करता रहा सजदा पशेमान सा था मन
रहमो करम कैसा,अब न इबादत मे खलल डालो।

                  कुसुम कोठारी

Wednesday 14 February 2018

किरणों के घुंघरू

उषा ने सुरमई शैया से
अपने सिंदूरी पांव उतारे
पायल छनकी
बिखरे सुनहरी किरणों के घुंघरू
फैल गये अम्बर में
उस क्षोर से क्षितिज तक
मचल उठे धरा से मिलने
दौड़ चले आतुर हो
खेलते पत्तियों से
कुछ पल द्रुम दलों पर ठहरे
श्वेत ओस को
इंद्रधनुषी बाना पहना चले
नदियों की कल कल में
स्नान कर पानी मे रंग घोलते
लाजवन्ती को होले से
छूते प्यार से
अरविंद में नव जीवन का
संदेश देते
कलियों फूलों में
लुभावने रंग भरते
हल्की बरसती झरनों की
फुहारों पर इंद्रधनुष रचते
छन्न से धरा का
आलिंगन करते,
जन जीवन को
नई हलचल देते
सारे विश्व पर अपनी
आभा छिटकाते
सुनहरी किरणों के घुंघरू। 

         कुसुम कोठारी।

Thursday 8 February 2018

फाल्गुन आयो मतवारो











फाल्गुन आयो  मतवारो
रंग और नूर लिये आली
आवन की आहट लिये
घुले सप्त रंग मधुर आली

सरस मलय संग उडी उडी
बन मे चले पात रंगीन
गुंचा गुंचा महक चला,
भ्रमर करत गूंजार आली

पिय आवन  की आस
हृदय  लिये बैठी  विरहन
पनघट पे सज श्रृंगार
आई भोली गुजरिया आली

फाग  खेलन पीव आयेंगे
मन  लिये चाव  घनेरो
जल्दी मे पायल अटरिया पे
छोड धाई आई आली।
                 कुसुम कोठारी।

Tuesday 6 February 2018

ओ घटा के मेघ शयामल

ओ गगन के चंद्रमा मै शुभ्र ज्योत्सना तेरी हूं
तूं आकाश भाल विराजित मै धरा तक फैली हूं

ओ अक्षूण भास्कर मै तेरी उज्ज्वल  प्रभा हूं
तूं विस्तृत नभ मे आच्छादित मै तेरी प्रतिछाया हूं

ओ घटा के मेघ शयामल मै तेरी जल धार हूं
तूं धरा की प्यास हर मै तेरा तृप्त अनुराग हूं

ओ सागर अन्तर तल गहरे मै तेरा विस्तार हूं
तूं घोर रोर प्रभंजन है मै तेरा अगाध उत्थान हूं

ओ मधुबन के हर सिंगार मै तेरा रंग गुलनार हूं
तूं मोहनी माया सा है मै निर्मल बासंती बयार हूं।
             कुसुम कोठारी।

Friday 2 February 2018

पारिजात

नंदन कानन महका
आज मन मे
श्वेत पारिजात बिखरे
तन मन मे
फूल कुसमित,
महकी चहुँ दिशाएँ
द्रुम  दल  शोभित
वन उर  मन मे
मलय सुगंधित
उडी पवन संग
देख घटा पादप विहंसे
निज मन मे
कमल  कुमुदिनी
हर्षित हो सरसे
हरित धरा  मुदित
हो मन  मे
जल प्रागंण
निज रूप संवारे लतिका
निरखी निरखी
लजावे मन मे।
कंचन जैसो नीर
सर  सरसत
आज सखी
नव राग है मन मे ।

         कुसुम  कोठारी।