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Thursday 26 January 2023

माँ भारती


 गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌷


माँ भारती


अब ले तिरंगा हाथ में चल मान से।

भू सज रही अब केसरी परिधान से।


जयकार की गूंजे सुहानी आ रही।

ऊँचा रखेगें भाल भी सम्मान से।।


गाथा कहें माँ भारती की हम सदा।

हर ओर गौरव गान हो अभिमान से।।


रख स्वावलंबी आज अपना ध्येय भी।

पूरा न हो कोई प्रयोजन दान से।।


करते रहे हम शोध हर दिन ही नवल।

ये विश्व सारा मुग्ध हो पहचान से।


हों विश्व गुरु हम ये प्रतिष्ठित भाव हो ।

होगा सफल विज्ञान अपने ज्ञान से।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday 19 January 2023

भावों के मोती


 भावों के मोती जब बिखरे

मन की वसुधा हुई सुहागिन


आज मचलती मसी बिखेरे

माणिक मुक्ता नीलम हीरे

नवल दुल्हनिया लक्षणा की

ठुमक रही है धीरे-धीरे

लहरों के आलोडन जैसे

हुई लेखनी भी उन्मागिन।।


जड़ में चेतन भरने वाली

कविता हो ज्यों सुंदर बाला

अलंकार से मण्डित सजनी

स्वर्ण मेखला पहने माला

शब्दों से श्रृंगार सजा कर

निखर उठी है कोई भागिन।


झरने की धारा में बहती

मधुर रागिनी अति मन भावन

सुभगा के तन लिपटी साड़ी

किरणें चमक रही है दावन

वीण स्वरों को सुनकर कोई

नाच रही लहरा कर नागिन।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday 14 January 2023

उषा से निशा तक


 गीतिका : आधार छंद पंचचामर

मापनी:- 1212 1212 1212 1212.


मचल-मचल लहर कगार पद पखारती रही।

करे नहान कूल रूप को निखारती रही।। 


नवीन रंग दिख रहा गगन प्रभात काल में।

किरण चली उचक उचक कनक पसारती रही।।


प्रदोषकाल अर्चियाँ सँभाल स्वर्ण  संचरण।

यहांँ रुको घड़ी पलक धरा पुकारती रही।।


निशा खड़ी उदास इंदु का तभी उदय हुआ।

नखत सजा परात आरती उतारती रही।।


लहक करे प्रसून स्वागतम् मयंक राज का।

समीर डालियाँ हिला चँवर डुलारती रही।


'कुसुम' प्रभा बिखर गई प्रकाश झिलमिला रहा।

निशा उड़ा रजत लटें क्षितिज सँवारती रही।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday 10 January 2023

हिन्दी कुशल सखी



हिन्दी कुशल सखी


काव्य मंजूषा छलक रही है

नित-नित मान नवल पाये।

हिन्दी अपने भाष्य धर्म से

डगर लेखनी दिखलाये।।


भाव सरल या भाव गूढ़ हो

रस मेघों से आच्छादित

 कविता मन को मोह रही है 

शब्द शक्तियाँ आल्हादित

प्रीत उर्वरक गुण से हिन्दी

संधि विश्व को सिखलाये।।


हिन्दी कवियों को अति रुचिकर 

कितने ग्रंथ रचे भारी

राम कृष्ण आदर्श बने थे

जन मन की हर दुश्वारी 

मंदिर का दीपक यह हिन्दी

विरुदावली भाट गाये ।।


जन आंदोलन का अस्त्र महा

नाट्य मंच का स्तंभ बनी

चित्रपटल संगीत जगत का

हिन्दी ही उत्तंभ बनी

अब नहीं अभिख्यान अपेक्षित 

यश भूमंडल तक छाये।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।

 

Sunday 8 January 2023

गीतिका:शुभ भाव


 गीतिका: आधार छंद:- माधवमालती, 2122×4


शुभ भाव


जो दहकती है घृणा वो शीघ्र थमनी चाहिए अब।

आग को शीतल करे वो ओस झरनी चाहिए अब।।


ले कहीं से आज आओ रागिनी कोई मधुर सी  ।

हर हृदय की गोह से बस खार  छटनी चाहिए अब।


बाहरी सज्जा चमन में फूल कृत्रिम कूट दिखते।।

बाग सुंदर हो कली हर इक महकनी चाहिए अब।


आन पर अपने चलो गौरव सदा अपना बचाओ ।

देश हित को ध्यान में रख नीति  रचनी चाहिए अब ।


साहसी होंगे वही जो राह कांटों की चुनेंगे।

पार करनी अब्धि हो दृढ़ एक तरनी चाहिए अब।


 जो कुसुम दुर्बल जनों को, स्वत्व अपना है बचाना।

आसमानों को झुका दें, चाह जगनी चाहिए अब।।


कुसुम कोठारी' प्रज्ञा'

Thursday 5 January 2023

दिल्ली का दर्द


 दिल्ली का दर्द


गेहिनी बन घर सँवारा

धार भूषण झिलमिलाई 

सैंकड़ों व्याघात झेले

चोट करती हर बिलाई।


राजरानी ये सिया सी

स्वामिनी भी तपस्विनी भी

सिर मुकुट धारा कभी तो

बन रही वो अधस्विनी भी

मौन बहते नेत्र जल को

पोंछ कर भी खिलखिलाई।।


आक्रमण के दंश तन पर

झेल कर आघात भारी

रोम से बहता लहू था

नाचती शायक दुधारी

नित फटे पोशाक बदले

और उधड़े की सिलाई।।


साथ लेकर दीर्घ गाथा

एक नगरी लाख पहरी

धैर्य के जब बाँध टूटे

बह चली तब पीर गहरी

चीखता प्राचीर क्रंदन

आज दिल्ली तिलमिलाई।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday 3 January 2023

स्वभाव


 स्वभाव


तुंग श्रृंग से लहर-लहर कर 

सोत पुनित कल-कल बहता।

सदियों की अविरल पौराणिक 

ओजस्वी गाथा कहता।


सूर्य चन्द्र निर्विघ्न विचरते

कर्म पंथ निर्बाधित सा

भागीरथ संकल्प कठिन पर 

पूर्ण हुआ श्रम साधित सा

समय बिराना कब रुकता है

मोह नींद टूटे ढहता।।


हर बादल से चपला चमके

श्याम मेघ जल भार भरे

सरस रही है धरा नवेली

बूंदों का सत्कार करे 

काल चक्र बस चले अहर्निस

मौसम की घातें सहता।। 


ओम नाद की शाश्वत आभा

तन मन आलोकित करती

वेदों की वो गेय ऋचाएं 

ज्ञान ध्यान अंतस भरती 

लौ आलौकिक दिव्य प्रकाशक

प्रेम हृदय उज्ज्वल रहता।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'