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Friday 30 September 2022

माँ कात्यायनी


 नवरात्रा षष्ठम दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🌷🌷


माँ कात्यायनी


अंशुक लाल तन धारती, सोने जैसे अंग।

वर देती मुद्रा धरे, धवल कमल के संग।

धवल कमल के संग, सिंह पर करे सवारी।

अर्चन हो मन भाव, भगे सभी महामारी।

सुनो कुसुम कर ध्यान, बजे जब मंदिर कंबुक।

तन में शांति का वास, लहरता माँ का अंशुक।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday 29 September 2022

माँ स्कंदमाता


माँ स्कंदमाता


शासन करती मोक्ष पर, वर देती अविराम ।

तन पर उजले वस्त्र है, स्कंद मात है नाम ।

स्कंद मात है नाम, हाथ में पंकज धरती ।

देती है आशीष, कामना पूरण करती ।

कहे कुसुम कर जोड़, पद्म पर सुंदर आसन।

माँ दे दो वरदान, दीप्त है तेरा शासन ।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

माँ कूष्माण्डा


 माँ कूष्माण्डा


आदिस्वरूपा आदिशक्ति

सौम्य सुशोभित रूप

अष्टभुजा माँ मातेश्वरी 

मुख पर खिलती धूप।


रचना करती ब्रह्मांड की

अंधकार को चीर

सुधा कलश अरु जल कमंडल

चक्र गदा धनु तीर

ऋद्धि सिद्धि जप माला हाथ

नव निधियों की स्तूप।।


व्याघ्र पृष्ठ बैठती मैया 

सूरजमंडल धाम

आलोकित है कांति इनकी

कूष्माण्डा है नाम

यश बल आरोग्य की दात्री

सुंदर रूप अनूप।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday 28 September 2022

माँ चंद्रघंटा


 


माँ चंद्रघंटा


सोने जैसी दमक रही माँ, द्युति है सूरज वरणी।

अस्त्र थामती दस हाथों में, चपला चमके अरणी।

अर्ध चन्द्र को शीश धारती, दृढ़ है सुंदर काया।

पीड़ा हरती भक्त जनों की, चंद्रघंटा अमाया।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

माँ ब्रह्मचारिणी


 माँ ब्रह्मचारिणी


तप त्याग वैराग्य संयम का, पाठ पढ़ाती माता ।

ब्रह्मचारिणी देती संयम, जो चरणों में आता।

श्वेत वसन है हाथ कमंडल, साधु वृंद गुण गाता।

हाथ जापनी सौम्या छवि है, देखूँ मन हर्षाता।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

माँ शैलपुत्री


 प्रथम दिवस


माँ शैलपुत्री


तनया पर्वत राज की, शैलपुत्री सुनाम।

नगपति जैसी ही अड़िग, वरदाई गुण खान।

वरदाई गुण खान,पूजती दुनिया सारी।

कमल लिए है हाथ, वृषभ की करे सवारी।

कहे कुसुम कर जोड़, खड़ी हूँ बनकर विनया।

देदो माँ वरदान, शैल की अनुपम तनया।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday 24 September 2022

मेरी दस सुक्तियाँ


 मेरी दस सुक्तियाँ 


1आँसू और पसीना दोनों काया के विसर्जन है,एक दुर्बलता की निशानी दूसरा कर्म वीरों का अमृत्व।


2 सफलता उन्हीं के कदम चूमती है जो समय को साध कर चलते हैं।


3 पहली हार कभी भी अंत नहीं शुरुआत है जीत के लिए अदम्य।


4 भाग्य को बदलना है तो स्वयं जुट जाओ।


5 हारता वहीं है जो दौड़ में शामिल हैं,बैठे रहने वाले बस बातें बनाते हैं।


6 सिर्फ पर्वत पर चढ़ जाना ही सफलता नहीं है, पथ के निर्माता भी विजेता होते हैं।


7 पथ के दावेदार नहीं पथ के पथिक बनों मंजिल तक वहीं पहुंचाती है।


8 लीक-लीक चलने वाले कब नई राह बनाते हैं।


9 पुराने खंडहरों पर नये भवन नहीं बनते,नये निर्माण के लिए सुदृढ़ नींव बनानी होती है, चुनौती की ईंट ईंट चुननी होती है।


10 किशोरों का पथ प्रर्दशन करो, उनपर बलात कुछ भी थोपने से वो आप से ज्यादा कभी भी नहीं सीख पायेंगे।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday 22 September 2022

अबूझ प्रकृति


 अबूझ प्रकृति


है अबूझी सी कथाएं

खेल कौतुक से भरा

ये कलाकृति काल की या

सूत्र धारी है परा।।


पाकशाला देव गण की

कौनसी खिचड़ी पके

धुंधरी हर इक दिशा है

ओट से सूरज तके

धुंध का अम्बार भारी

व्योम से पाला झरा।।


ये प्रकृति सौ रूप धरती

कब अशुचि कब मोहिनी

मौसमी बदलाव इतने

रूक्ष कब हो सोहिनी

कौन रचता खेल ऐसे

है अचंभे से भरा।। 


दृश्य मधुरिम से उकेरे

पर्वतों के छोर में

भानु लुकता फिर रहा है

शून्य रेखा खोर में

कोहरा वात्सल्य बिखरा

आज आँचल में धरा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Sunday 18 September 2022

अल्प कालिक कुंद कवि


 अल्पकालिक कुंद कवि


मन घुमड़ते बादलों से

सृष्टि की चाहत लड़ी

तूलिका क्यों मूक होकर

दूर एकाकी खड़ी।


लेखनी को रोक देते

शब्द बन बैठे अहेरी

गीत कैसे अब खिलेंगे

धार में पत्थर महेरी

भाव ने क्रंदन मचाया

खिन्न कविता रो पड़ी।।


खिलखिलाई शाख पर थी

आज भू पर सो रही है

पाटलों के साथ खेली 

धूल पर क्यों खो रही है

थाम कर कोमल करो से

सांभने की है घड़ी।।


हो समर्पित रचयिता बस

नींद त्यागेगी कभी तो

अल्प सा अवकाश मांगे

मोह निद्रा है अभी तो

तोड़ कर के कुंद पहरे

 बह चले शीतल झड़ी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Friday 16 September 2022

वृद्ध वय ढलता सूर्य


 वृद्ध वय ढलता सूर्य


पर्यटन अवसान को जब

है अभिज्ञा अब स्वता से

क्लांत हो मनसा भटकती

दूर होकर तत्वता से।


प्रोढ़ होता मन सुने अब

क्षीण से तन की कहानी 

सोच पर तन्द्रा चढ़ी है

गात पतझर सा सहानी

रीत लट बन श्वेत वर्णी

झर रही परिपक्वता से।


खड़खड़ाती जिर्ण श्वासें

देह लिपटी कब रहेगी

तोड़ बंधन चल पड़ी तो

शून्य में जाकर बहेगी

कौन घर होगा ठिकाना

बैठ सोचे ह्रस्वता से।।


ताप ढलता सूर्य गुमसुम

ओट जैसे खोजता है

चैन फिर भी न मिलता

सुस्त बाहें खोलता है

थाम ने कोना क्षितिज का

मिचमिचाता अल्पता से।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday 13 September 2022

हिन्दी क्यों पराई


 हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌷🌷


हिन्दी क्यों पराई


चाट रही है खोद नींव को

परदेशी दीमक ये द्वार।

मधु प्याला ही सबसे प्यारा

गंगाजल लगता है खार।


घर की बेटी हुई पराई

दत्तक पर उमड़ा है नेह

आज निवासी बने प्रवासी

छोड़ छाड़ सब अपना गेह

मैया सुबके है कौने में 

मेम सँभाले घर का भार।।


यथाचार में हिन्दी रोती

हर साधक भी चाहे नाम

मातृ भाष का नारा गूंजे

दिन दो दिन का ही बस काम

परिपाटी ही रहे निभाते

कैसे हो फिर बेड़ा पार।।


शिक्षा आंग्ल वीथिका रमती

घर की मुर्गी लगती दाल

भाष विदेशी प्यारी लगती

पढ़कर बदली सबकी चाल

हिन्दी के अन्तस् को फूँके

यौतुक सी ज्वाला हर बार।।


 कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

Friday 9 September 2022

छन्न पकैया


 सार छंद आधारित बाल गीत।


छन्न पकैया


छन्न पकैया छन्न पकैया, 

आज सजी है धरणी।

आया मंजुल मास सुहाना, 

हरित सुधा रस भरणी।


नाचे गाये मोर पपीहा

पादप झूम रहे हैं

बागों में कलियाँ मुस्काई

भँवरे घुम रहे हैं

बीच सरि के ठुम ठुम डोले

काठ मँढ़ी इक तरणी।।


धोती बाँधे कौन खड़ा है

खेतों की मेड़ों पर

उल्टी हाँडी ऐनक पहने

पाग रखी बेड़ों पर

बुधिया काका घास खोदते

हाथ चलाते करणी।।


दादुर लम्बी कूद लगाते

और कभी छुप जाते

श्यामा गाती गीत सुहाने

झर-झर झरने गाते

चिड़िया चीं चीं फुदके गाये

कुतर-कुतर कर परणी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday 3 September 2022

प्रकृति के रूप


 गीतिका/212 1212 1212 1212.


प्रकृति के रूप


आसमान अब झुका धरा भरी उमंग से।

लो उठी अहा लहर मचल रही  तरंग से।।


शुचि रजत बिछा हुआ यहाँ वहाँ सभी दिशा।

चाँदनी लगे टहल-टहल रही  समंग से।।


वो किरण लुभा रही चढ़ी गुबंद पर वहाँ।

दौड़ती समीर है सवार हो पमंग से।।


रूप है अनूप चारु रम्य है निसर्ग भी ।

दृश्य ज्यों अतुल दिखा रही नटी तमंग से।।


जब त्रिविधि हवा चले इलय मचल-मचल उठे।

और कुछ विशाल वृक्ष झूमते मतंग से।


वो तुषार यूँ 'कुसुम' पिघल-पिघल चले वहाँ।

स्रोत बन सुरम्य अब उतर रहे उतंग से।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

इलय/गतिहीन