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Thursday, 21 September 2023

अद्भुत प्रकृति


 गीतिका:

अद्भुत प्रकृति 

आसमान अब झुका धरा भरी उमंग से।

लो उठी अहा लहर मचल रही  तरंग से।।


शुचि रजत बिछा हुआ यहाँ वहाँ सभी दिशा।

चाँदनी लगे टहल-टहल रही  समंग से।।


वो किरण लुभा रही चढ़ी गुबंद पर वहाँ।

दौड़ती समीर है सवार हो पमंग से।।


रूप है अनूप चारु रम्य है निसर्ग भी ।

दृश्य ज्यों अतुल दिखा रही नटी तमंग से।।


जब त्रिविधि हवा चले इलय मचल-मचल उठे।

और कुछ विशाल वृक्ष झूमते मतंग से।


वो तुषार यूँ 'कुसुम' पिघल-पिघल चले वहाँ।

स्रोत बन सुरम्य अब उतर रहे उतंग से।।


इलय/गतिहीन


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday, 13 September 2023

हिन्दी कुशल सखी


 विश्व हिन्दी दिवस पर हार्दिक बधाई 💐💐


हिन्दी कुशल सखी


काव्य मंजूषा छलक रही है

नित-नित मान नवल पाये।

हिन्दी अपने भाष्य धर्म से

डगर लेखनी दिखलाये।।


भाव सरल या भाव गूढ़ हो

रस मेघों से आच्छादित

कविता मन को मोह रही है 

शब्द शक्तियाँ आल्हादित

प्रीत उर्वरक गुण से हिन्दी

संधि विश्व को सिखलाये।।


हिन्दी कवियों को अति रुचिकर 

कितने ग्रंथ रचे भारी

राम कृष्ण आदर्श बने थे

जन मन की हर दुश्वारी 

मंदिर का दीपक यह हिन्दी

विरुदावली भाट गाये ।।


जन आंदोलन का अस्त्र महा

नाट्य मंच का स्तंभ बनी

चित्रपटल संगीत जगत का

हिन्दी ही उत्तंभ बनी

अब नहीं अभिख्यान अपेक्षित 

यश भूमंडल तक छाये।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।

Wednesday, 19 July 2023

अनुशीलन माँ शारदे


 अनुशीलन माँ शारदे


हाथ में कूची उठाई

आ गये माँ तव शरण

है कला माध्यम उत्तम

कोटि करते हैं भरण।


बान अनुशीलन रहे तो

शब्द बनते शक्ति है 

नित निखरते व्यंजना से

फिर सृजन ही भक्ति है

मर्म लेखन बिम्ब बोले 

नित सिखाये व्याकरण।।


लेख प्रांजल हो प्रभावी

मोद आत्मा में जगे

पढ़ प्रमादी जाग जाए

और सब आलस भगे

लेखनी नव शक्ति भर दो

नित पखारें हैं चरण।


वेद हो या शास्त्र पावन

अक्षरों में हैं सजे

थात है इतिहास भी जो

प्रज्ञ पण्डित भी भजे

लेख बिन सब भाव सूने

कर रहा है युग वरण।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 6 June 2023

पर्यावरण और गर्मी


 गीतिका :

221 2122 221 2122.


पर्यावरण और गर्मी


सविता धधक रहा है जीवन व्यथित हुआ अब।

हैं नीर रिक्त सरवर सूखे कुएँ  सरित सब।।


अंगार से लगे है हर पेड़ पात जलता।

लू के बहे थपेड़े ज्यों धूल संग करतब।।


तन संकुचित धरित्री लो गोद आज उजड़ी।

धर मेह दे नहीं तो होगी हरित धरा कब।।

धर=बादल


है भूमि रत्नगर्भा पर अंबु चाहती नित।

सिंचन बिना कुँवारी कर स्नान सरसती जब।।


झूठी कथा नहीं सच कारण मनुज तुम्हीं हो।

पर्यावरण बचाओ भू पर खनक बचे तब।।


हो इंद्र देव खुश तो फिर वृष्टि गीत गाती।

गिर तापमान जाता वन मोर नाचता अब।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 1 June 2023

हिल्लोल


 हिल्लोल


चाँदनी का बाँध टूटा

भू उमंगित हो नहाए

पेड़ डूबे पात निखरे

चाँद फुनगी पर सुहाए।


खिलखिलाती है हवाएँ

झूमती हिल्लोल लेने

पात पादप में उलझती

नव मुकुल को नेह देने

लोल लतिका सुप्त जागे

डोलती सी गोद भाए।।


दौड़ती नाचे खुशी में 

कंठ गिरि के झूमती हैं

नादिनी लहरी मचल कर

चोटियों को चूमती है

धुन नदी देती चली जब

उर्मियों ने गीत गाए।।


श्रृष्टि रचती रूप कितने

चेल अपने नित बदलती

मानसी मन मोहिनी सी

सांध्य दीपक बन मचलती

गोद में सुख सेज भी है

मोद का सोता बहाए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday, 17 May 2023

धरा फिर मुस्कुराई


 धरा फिर मुस्कुराई


सिंधु से आँसू उठाकर 

बादलों ने घर दिए

ताप से जलती धरा पर

लेप शीतल कर दिए।


नेह सिंचित भूमि सरसी

पोर मुखरित खिल गया

ज्यों वियोगी काव्य को

छंद कोई मिल गया

गूंथ अलके श्यामली सी

फूल सुंदर धर दिए।।


ठूंठ होते पादपों पर

कोंपले खिलने लगी

प्राण में नव वायु दौड़ी

आस फिर फलने लगी

ज्योति हर कण में प्रकाशित

भोर ने ये वर दिए।।


शाख पर खिलते मुकुल पर

तितलियों ने गीत गाये

भूरि राँगा यूँ बिखरकर

पर्व होली का मनाये

ये कलाकृति पूछती है

रंग किसने भर दिए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 11 May 2023

हम तुम


 तुम हम


हृदय खिला है उपवन जैसा

हरा हुआ मन पीत

सरगम बजती पंचम सुर में

गूंज रहे हैं गीत।


सरिता के तट बैठे तुम-हम

पाँव नीर में डाल

झिंगुर गुनगुन गीत सुनाते

हवा बजाती ताल

जीवन पथ के पल-क्षण सुंदर 

याद रखो सब मीत।।


सुख की सब सौगातें प्यारी

सदा रहेंगी साथ

हर पथ पर हम चले उमंगित

लिए हाथ में हाथ

कभी जीत के हार गले में

कभी हार में जीत।।


झंझावात सभी झेले थे

इक दूजे के संग

पर चेहरे की मुस्कानों का

दिखे न फीका रंग

भला लगे हर बंधन साथी 

भली लगे हर रीत।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'