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Sunday, 23 February 2025

व्योम


 गीत:  व्योम


व्योम का रूप ज्यों, कृष्ण की नीलिमा।

अंक तारे भरे, फूल ज्यों चंद्रिमा।


चंचला चाँदनी, चाँद से झाँकती।

नीलिमा नील से,व्योम को आँकती।

रत्न झोली लिए, कौन बाला खड़ी

रात की ओढ़नी, शुभ्र हीरों जड़ी

गंग है रौप्य की, मोहिनी  चाल है।

पुर्णिमा की धवल, ज्योति है आशिमा।


रात यूँ भागती, कौन से देश को,

साथ जो ले चली,श्यामला वेश को।

चाँद भी जा रहा, नीम तारे छटे,

पूर्व है जागता, कालिमा अब घटे।

शुभ्र आभा झरे, भोर में राग है

व्योम के भाल पर,सूर्य की अरुणिमा।


शुभ्र अब मेदिनी, ध्वांतता खो रही,

अंशुमाली जगा, ओस ज्यों सो रही।

कौस्तुभी रंग है, रूप में तेज है,

पूर्ण वो जब तपे, आग की सेज है।

व्योम में शोभते, मेदिनी के देव तुम,

प्राण हो आभ हो, तीक्ष्ण है भंगिमा।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 25 फ़रवरी 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. स्निग्ध गगन प्रखर आलोक

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