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Saturday 14 January 2023

उषा से निशा तक


 गीतिका : आधार छंद पंचचामर

मापनी:- 1212 1212 1212 1212.


मचल-मचल लहर कगार पद पखारती रही।

करे नहान कूल रूप को निखारती रही।। 


नवीन रंग दिख रहा गगन प्रभात काल में।

किरण चली उचक उचक कनक पसारती रही।।


प्रदोषकाल अर्चियाँ सँभाल स्वर्ण  संचरण।

यहांँ रुको घड़ी पलक धरा पुकारती रही।।


निशा खड़ी उदास इंदु का तभी उदय हुआ।

नखत सजा परात आरती उतारती रही।।


लहक करे प्रसून स्वागतम् मयंक राज का।

समीर डालियाँ हिला चँवर डुलारती रही।


'कुसुम' प्रभा बिखर गई प्रकाश झिलमिला रहा।

निशा उड़ा रजत लटें क्षितिज सँवारती रही।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

16 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलरविवार (15-1-23} को "भारत का हर पर्व अनोखा"(चर्चा अंक 4635) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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    कामिनी सिन्हा

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    1. हृदय से आभार आपका कामिनी जी।
      चर्चा मंच पर रचना को देखना सदा सुखद है मेरे लिए।
      सस्नेह।

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    2. हृदय से आभार आपका कामिनी जी।
      चर्चा मंच पर रचना को देखना सदा सुखद है मेरे लिए।
      सस्नेह।

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  2. उफ्फ़ कुसुम जी, काव्यात्मकता की पराकाष्ठा ही दिखा दी आपके इस गीत ने, इस श्रेष्ठतम रचना ने। असीमित शाब्दिक सौन्दर्य के साथ-साथ ही भावात्मक सौंदर्य ने मन मोह लिया। क्या ही लिख गई हैं आप! 'प्रदोषकाल अर्चियाँ सँभाल स्वर्ण संचरण।यहांँ रुको घड़ी पलक, धरा पुकारती रही।' -क्या कहा जाए इस शब्दावली के अद्भुत सौंदर्य के लिए ! यही नहीं, छंद के एक-एक हिस्से में अनुपम सौंदर्य समाया है। गज़्ज़ब!

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    1. हृदय तल से आभार आपका आदरणीय, आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से मैं अभिभूत हूँ।
      रचना पर विहंगम दृष्टि ने रचना को अमूल्य बना दिया।
      पुनः आभार।
      सादर।

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  3. बहुत सुन्दर कुसुम जी !
    छंदों की तो आप साम्राज्ञी हैं.

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर, आपकी प्रसंशा से रचना को नए आयाम मिले।
      सादर

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  4. वाह.वाह.वाह.
    जितना सुंदर भाव, उतना ही सुंदर संप्रेषण,
    लयात्मकता के क्या कहने, एक बार में धाराप्रवाह पढ़ने को मजबूर कर दिया इस काव्यात्मक सुंदरता ने ।
    बधाई अप्रतिम रचना के लिए। नमन मेरा।

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    1. सार्थक विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई जिज्ञासा जी।
      हृदय से आभार आपका।
      सस्नेह।

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  5. वाह अनुपम भाव सुंदर शब्दावली से सजी सार्थक रचना सखी मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी उत्साह वर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
      सस्नेह।

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  6. वाह लाजबाव सृजन

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    1. हृदय से आभार आपका भारती जी।
      सस्नेह।

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  7. बहुत सुन्दर ... शब्द प्राकृतिक छटा को बाखूबी लिखते हुवे ...
    जटा टवी गलाज्ज्वल की याद आ गई ...

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    1. हृदय से आभार आपका, उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

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