सतरंगी यादें।
ख्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का
एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का ।
सतरंगी धागों का रेशमी इंद्रधनुषी शामियाना
जिसके तले मस्ती में झुमता एक भोला बचपन ।
सपने थे सुहाने उस परी लोक की सैर के
वो जादुई रंगीन परियां जो डोलती इधर उधर।
मन उडता था आसमानों के पार कहीं दूर
एक झूठा सच, धरती आसमान है मिलते दूर ।
संसार छोटा सा लगता ख्याली घोडे का था सफर
एक रात के बादशाह बनते रहे संवर संवर ।
दादी की कहानियों में नानी थी चांद के अंदर
सच की नानी का चरखा ढूढते नाना के घर ।
वो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन
ख्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।
एक इंद्रधनुषी स्वप्निल रंगीला बचपन।
कुसुम कोठारी।
ख्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का
एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का ।
सतरंगी धागों का रेशमी इंद्रधनुषी शामियाना
जिसके तले मस्ती में झुमता एक भोला बचपन ।
सपने थे सुहाने उस परी लोक की सैर के
वो जादुई रंगीन परियां जो डोलती इधर उधर।
मन उडता था आसमानों के पार कहीं दूर
एक झूठा सच, धरती आसमान है मिलते दूर ।
संसार छोटा सा लगता ख्याली घोडे का था सफर
एक रात के बादशाह बनते रहे संवर संवर ।
दादी की कहानियों में नानी थी चांद के अंदर
सच की नानी का चरखा ढूढते नाना के घर ।
वो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन
ख्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।
एक इंद्रधनुषी स्वप्निल रंगीला बचपन।
कुसुम कोठारी।
बेहतरीन यादें बचपन की बहुत सुंदर रचना सखी
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteबहुत अच्छी रचना .
ReplyDeleteहिन्दीकुंज,हिंदी वेबसाइट/लिटरेरी वेब पत्रिका
जी सादर आभार उत्साह वर्धन के लिये ।
Deleteबहुत सुन्दर सृजन सखी
ReplyDeleteसादर
बहुत सा आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा मनभावन।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 02/02/2019 की बुलेटिन, " डिप्रेशन में कौन !?“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteजी हृदय तल से आभार मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने हेतू ।
Deleteख्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का
ReplyDeleteएक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का ।
वाह...., अत्यंत सुन्दर !!
बहुत सा स्नेह आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteसस्नेह ।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
४ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार श्वेता ।
Delete
ReplyDeleteख्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का
एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का ।
बहुत ही प्यारी रचना प्रिय कुसुम बहन बचपन की यादों से बेहतरीन जीवन में कुछ नहीं होता | दादी की कहानी में चाँद पर चरखा कातने की कल्पना कितनी रोमांचक और मनभावन थी | एक तीस जगती है उन यादों में झाँक कर | पहली तो पंक्तियाँ तो बालसुलभ सादगी की परिचायक हैं | सस्नेह आभार बहना |
प्रिय रेनू बहन ढेर सा स्नेह ।
Deleteआपने इतनी सुन्दरता से रचना को प्रवाह दिया है,रचना मुखरित हुई सचमुच बचपन में सब कुछ तिलिस्म जैसा ही था सबकुछ कितना न्यारा कितना प्यारा। आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली बहन स्नेह बनाये रखें । g+ बंद हो रहा है फेसबुक पर ज्वॉइन करें तो सदा सानिध्य बना रहेगा ।
सस्नेह।
दादी की कहानियों में नानी थी चांद के अंदर
ReplyDeleteसच की नानी का चरखा ढूढते नाना के घर
जी मुझे भी दादी की याद आ गयी,बड़ा ही निष्ठुर है यह जीवनचक्र , बिल्कुल चक्रव्यूह की तरह षड़यंत्र ही षड़यंत्र।
प्रणाम।
सस्नेह आभार शशि भाई समय की निष्ठुरता तो शाश्वत है कितना कुछ छिन लेती है न जाने।
Deleteफेसबुक पर ज्वॉइन करें g+बंद हो रहा है।
बहुत ही सुंदर रचना आदरणीया
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रविंद्र जी आपका।
Deleteवो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन
ReplyDeleteख्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।
बचपन की यादें भुलाये नहीं भूलती जब याद आती हैतरोताजा कर देती हैं निश्छल बचपन की यादो पर बही ही खूबसूरत सृजन....
वाह!!!
कितना प्यारा लिखा आपने सुधा जी रचना के समानांतर।
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका ।