आयो बहार बसंत
आवो सखी आई बहार बसंत
चहूं और नव पल्लव फूले
कलियां चटकी
मौसम में मधुमास सखी री
तन बसंती मन बसंती
और बसंती बयार सखी री
धानी चुनर ओढ के
धरा का पुलकित गात
नई दुल्हन को जैसे
पिया मिलन की आस सखी री
पादप अंग फूले मकरंद
मुकुंद भरमाऐ सखी री
स्वागत करो नव बसंत को
गावो मंगल गान सखी री
आयो सखी आई बहार बसंत ।
कुसुम कोठारी ।
आवो सखी आई बहार बसंत
चहूं और नव पल्लव फूले
कलियां चटकी
मौसम में मधुमास सखी री
तन बसंती मन बसंती
और बसंती बयार सखी री
धानी चुनर ओढ के
धरा का पुलकित गात
नई दुल्हन को जैसे
पिया मिलन की आस सखी री
पादप अंग फूले मकरंद
मुकुंद भरमाऐ सखी री
स्वागत करो नव बसंत को
गावो मंगल गान सखी री
आयो सखी आई बहार बसंत ।
कुसुम कोठारी ।
लाजवाब प्रस्तुती
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका ।
Deleteबेहद खूबसूरत रचना सखी
ReplyDeleteबहुत सा आभार सखी।
Deleteसस्नेह ।
धानी चुनर ओढ के
ReplyDeleteधरा का पुलकित गात
नई दुल्हन को जैसे
पिया मिलन की आस सखी री
पादप अंग फूले मकरंद
मुकुंद भरमाऐ सखी री........ वाह!!!
बहुत बहुत आभार हृदय तल से।
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार. 31 जनवरी 2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सादर आभार आपका संगीता जी मेरी काफी पुरानी रचना को आप खोज कर ले जा रहीं हैं । पांच लिंक पर जाना वैसे भी सुखद एहसास है उस पर ये रचना मुझे स्वयं को भी बहुत दिनों बाद देखने को मिली ,वैसे ये मेरे लेखन के शुरुआती दौर में लिखी रचनाओं में से एक है यहां 2019में डाली थी पर शायद 2016 में लिखी थी।
Deleteअपने शुरुआती दौर के सृजन हृदय के पास के होते हैं
सहज सरल।
सादर आभार आपका।
मंत्रमुग्ध कर रहा है यह बसंत।
ReplyDeleteसच बसंत हमारे कोलकाता में इतना रंगीन होता है मां सरस्वती की पूजा घर घर देखने को मिलती है बसंती वस्त्र पहने बाल बालाएं इतने प्यारे लगते हैं अवर्णनीय ।
Deleteउस पर पूजा का उत्साह प्रसाद मां वाग्देवी की अर्चना सब कुछ आनंदित करता सा।
हृदय से आभार आपका अमृता जी जो बसंत आपको आह्लाद से भर रहा है।
सस्नेह।
हमारे बिहार में भी ऐसा ही दृश्य देखने को मिलता है कुसुम जी, आप की इस पुरानी रचना को पढ़ आनन्द आ गया,मन बसंती हो गया,अति सुन्दर सृजन,सादर नमस्कार आपको
Deleteधानी चुनर ओढ के
ReplyDeleteधरा का पुलकित गात
नई दुल्हन को जैसे
पिया मिलन की आस सखी री
पादप अंग फूले मकरंद
मुकुंद भरमाऐ सखी री
वाह!!!
बहुत ही मनमोहक लाजवाब सृजन
फाग और बसंत के राग में आपकी लेखनी का कोई सानी नहीं।
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी ,आपने सच ही कहा है प्राकृतिक सौंदर्य मेरी लेखनी के सेहत विटामिन है ।
ReplyDeleteआपकी विशिष्ट प्रतिक्रिया मेरे सृजन को बहुमूल्य उपहार है।
सस्नेह।
मौसम में मधुमास सखी री
ReplyDeleteतन बसंती मन बसंती
और बसंती बयार सखी री
क्या बात है प्रिय कुसुम बहन!
छायावादी कवियों सी मधुर शैली में अत्यन्त मनमोहक प्रस्तुति।
इस बसंत से मन में वसंत छा गया। ढेरों शुभकामनाएं और बधाई आपको।
और इतनी प्यारी रचना शुरुआती दौर की है तो और भी खास है 🌷💐
ReplyDeleteअति मनमोहक सृजन दी।
ReplyDelete-----
केसर बेसर डाल-डाल
धरणी पीयरी चुनरी सँभाल
उतर आम की फुनगी से
सुमनों का मन बहकाये फाग
तितली भँवरें गाये नेह के छंद
सखि रे! फिर आया बसंत
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प्रणाम दी
सादर।
बहुत सुंदर बासंती बहार की तरह
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